जे के मिश्र,
ब्यूरो चीफ
, नवभारत टाइम्स,24*7in बिलासपुर
रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी स्थित पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय (रविवि) में एक गंभीर प्रशासनिक चूक सामने आई है। विश्वविद्यालय में एक दर्जन से अधिक प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर और कर्मचारी ऐसे हैं, जिनका जाति प्रमाण पत्र अब तक सत्यापित नहीं हो पाया है। बावजूद इसके, ये कर्मचारी बीते 10 से 15 वर्षों से अधिक समय से नौकरी कर रहे हैं।
पत्राचार जारी, कार्रवाई ठप
विश्वविद्यालय प्रशासन ने संबंधित कर्मचारियों के जाति प्रमाण पत्रों की सत्यता के लिए जिला स्तरीय समिति को पत्र भेजे हैं, लेकिन आज तक कोई जवाब नहीं मिला है। अधिकारियों के अनुसार, कई बार रिमाइंडर भी भेजे गए, लेकिन समिति की ओर से ठोस पहल न होने के कारण आगे की प्रक्रिया ठप पड़ी है।
आरटीआई से हुआ खुलासा
सूचना का अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त जानकारी से यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि विश्वविद्यालय में 12 से अधिक शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक कर्मचारी विभिन्न आरक्षण वर्ग (एससी, एसटी, ओबीसी) में नियुक्त हुए हैं, जिनके जाति प्रमाण पत्रों की अब तक वैधता की जांच नहीं हुई है। विश्वविद्यालय ने वर्ष 2021 और 2022 में कई बार जिला समिति से सत्यापन कराने के लिए पत्राचार किया, लेकिन कोई ठोस उत्तर नहीं मिला।
प्रमोशन भी मिले, पर सत्यापन अधूरा
चिंताजनक बात यह है कि इनमें से कई कर्मचारियों को प्रमोशन भी मिल चुका है, जबकि उनका जाति प्रमाण पत्र अब तक सत्यापित नहीं है। यह स्थिति सिर्फ रविवि तक सीमित नहीं है, बल्कि राज्य के अन्य शासकीय विश्वविद्यालयों में भी इसी तरह की स्थिति देखी जा रही है।
प्रमाण पत्रों की वैधता पर भी उठे सवाल
विशेषज्ञों का मानना है कि जिन जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी दी गई है, उनकी वैधता पर अब सवाल उठ रहे हैं। 2016 से पहले यह नियम था कि नियुक्ति के समय प्रस्तुत किए गए जाति प्रमाण पत्र की वैधता की पुष्टि अनिवार्य थी। परंतु कई मामलों में यह प्रक्रिया अधूरी रह गई, और अब जमा दस्तावेजों की समीक्षा भी जरूरी हो गई है।
निष्क्रियता या उदासीनता?
इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन की निष्क्रियता भी सवालों के घेरे में है। वर्षों से लंबित सत्यापन और प्रमोशन के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सिस्टम में कहीं न कहीं लापरवाही व्याप्त है।
अब आगे क्या?
समाज के जागरूक वर्ग और शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में राज्य सरकार को हस्तक्षेप कर त्वरित जांच और आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी प्रशासनिक अनदेखी न दोहराई जा सके। साथ ही, जिन कर्मचारियों ने बिना सत्यापन नौकरी की है, उनकी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए।
