सुआ नृत्य की परंपरा को संरक्षित कर युवा पीढ़ी को जोड़ें-परमानंद साहू

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दीपोत्सव में छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर: सुआ नृत्य ने मोहा मन, युवा पीढ़ी ने संभाली डोर

निर्मल अग्रवाल ब्यूरो प्रमुख मुंगेली 8959931111

सरगांव- छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक सुआ नृत्य इस बार दीपावली के अवसर पर सरगांव नगर सहित आसपास के अंचल में जोर-शोर से मनाया जा रहा। पारंपरिक परिधानों में सजी महिलाओं व बच्चों की टोलियों ने प्रसिद्ध सुआ नृत्य के माध्यम से दिवाली का उत्साह दोगुना कर दिया। यह नृत्य न केवल फसल की अच्छी पैदावार का आभार व्यक्त करता है, बल्कि शिव-पार्वती के विवाह की खुशी को भी समेटे हुए है, जो छत्तीसगढ़ की आदिवासी परंपरा का अभिन्न अंग है।

सरगांव के मुख्य बाजार और आसपास के विभिन्न क्षेत्रों में शाम ढलते ही सुआ नृत्य की धुन गूंजने लगी। महिलाएं बांस की टोकरी में धान भरकर मिट्टी का तोता (सुआ) स्थापित करती हुईं, उसके चारों ओर वृत्ताकार में नाचती रहीं। ताली बजाते हुए गाए जाने वाले सुआ गीतों में प्रेम, विरह और खुशी की भावनाएं उमड़ पड़ीं। सरगांव की स्थानीय महिलाओं का कहना है कि यह नृत्य गोंड जनजाति की परंपरा से जुड़ा है, जो दीपावली से कुछ दिन पहले शुरू होकर दो महीने तक चलता है।

इस आयोजन में भाग लेने वाली समीपस्थ सल्फा निवासी बैगिन ने बताया, “सुआ नृत्य तोते की नकल करता है, जहां हम अपनी मन की बातें गीतों के जरिए व्यक्त करती हैं। नृत्य के दौरान महिलाओं ने प्रसिद्ध सुआ गीत ‘तरी हरी नाना’ की धुन पर थिरकते हुए उत्साह बढ़ाया। दीपावली के इस उत्सव में हमारा अंचल रंग-बिरंगी रोशनी और नृत्य से जगमगा उठा।” बच्चों की टोलियां भी पारंपरिक वेशभूषा में शामिल हुईं, जिससे पूरा क्षेत्र सांस्कृतिक रंग में रंग गया।

मुंगेली जिले के इस हिस्से में सुआ नृत्य फसल कटाई के बाद धन-धान्य की कामना के साथ किया जाता है, और कोई वाद्य यंत्र न बजाकर केवल तालियों व गीतों पर ही यह नृत्य संपन्न होता है। सरगांव नगर पंचायत अध्यक्ष परमानंद साहू ने इस परंपरा को बढ़ावा देने के लिए विशेष सराहना की और कहा, “सुआ नृत्य हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अमूल्य रत्न है, जो आदिवासी परंपराओं को जीवंत रखता है। हम युवा पीढ़ी को इसमें शामिल कर इसकी निरंतरता सुनिश्चित करेंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी जड़ों से जुड़ी रहें।”

आसपास के गांवों से आई महिलाओं की टोलियां नगर के प्रमुख चौक पर एकत्रित हुईं, जहां मिट्टी के सुआ को लाल कपड़े से ढके बांस की टोकरी को सिर पर उठाकर नृत्य किया गया। यह दृश्य देखने वालों को छत्तीसगढ़ की जीवंत लोक संस्कृति की याद दिला गया।

विशेषज्ञों के अनुसार, सुआ नृत्य बैगा, हल्बा और गोंड जनजातियों में विशेष महत्व रखता है, जो सामुदायिक एकता को मजबूत करता है। दिवाली के इस मौके पर सरगांव सहित पूरे अंचल में सुआ नृत्य ने पर्यटन को भी बढ़ावा दिया। स्थानीय निवासी अब इस परंपरा को आधुनिक तरीके से संरक्षित करने की दिशा में कदम उठा रहे हैं, ताकि नई पीढ़ी इसे भूले नहीं। यह उत्सव न केवल धार्मिक महत्व का है, बल्कि सामाजिक सद्भाव का भी प्रतीक बन गया।

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Author: Deepak Mittal

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