प्यासी हुई जीवनदायिनी नदियां मनियारी और शिवनाथ
अधिकांशतः ग्रामों में पेयजल आपूर्ति ठप्प
निर्मल अग्रवाल ब्यूरो प्रमुख मुंगेली 8959931111
सरगांव – लगातार गिरते भूजल स्तर के चलते पानी की समस्या ने गम्भीर रूप ले लिया है और चिंता के इस विषय ने हाहाकार मचा दिया है नतीजन जंहा नदियां सुख रही वंही अधिकांशतः ग्रामों में पेयजल की आपूर्ति ठप्प पड़ते जा रही है
सरगांव क्षेत्र ही नहीं वरन् कमोबेश पुरा छत्तीसगढ़ पिछले कुछ वर्षों में पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहा है।
यहाँ भूजल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है, सरगांव क्षेत्र से होकर बहने वाली शिवनाथ और मनियारी जैसी प्रमुख नदियाँ सूख रही हैं, और बोरवेल का जलस्तर 250 फीट तक पहुँच गया है। इस संकट का एक प्रमुख कारण ग्रीष्मकालीन धान की खेती है,जो पानी की अत्यधिक माँग करती है। इसके परिणामस्वरूप न केवल भूजल स्तर में गिरावट हो रही है, बल्कि आसपास के ग्रामों में पेयजल की उपलब्धता भी गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है। इस स्थिति से निपटने के लिए शासन को ग्रीष्मकालीन धान की फसल पर रोक लगाने, वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने और जन जागरण अभियान चलाने की आवश्यकता है।

सुखी शिवनाथ व मनियारी नदी हुई प्यासी
सरगांव क्षेत्र में शिवनाथ और मनियारी नदियाँ, जो कभी इस क्षेत्र की जीवनरेखा थीं, अब सूख रही हैं। इन नदियों का सूखना जलवायु परिवर्तन, अनियमित मानसून और अत्यधिक भूजल दोहन का परिणाम है। बोरवेल का जलस्तर 250 फीट तक पहुँच जाना इस बात का संकेत है कि भूजल भंडार तेजी से समाप्त हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य, जहाँ कृषि अर्थव्यवस्था का आधार है, में भूजल का 89% हिस्सा सिंचाई के लिए उपयोग होता है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पिछले 10 वर्षों के बीच भूजल स्तर 61% तक गिरा है, जिसका प्रभाव सरगांव सहित पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश में दिखाई दे रहा है। अप्रैल,मई और जून के ढाई महीना अभी बाकी लेकिन पानी की जो समस्या अभी है,वो भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
ग्रीष्मकालीन धान की खेती बनती गम्भीर समस्या

ग्रीष्मकालीन धान की खेती इस समस्या को और गंभीर बना रही है, क्योंकि यह फसल पानी की अत्यधिक माँग करती है और गर्मियों में नदियों और वर्षा पर निर्भरता के अभाव में भूजल पर दबाव बढ़ाती है।ग्रीष्मकालीन धान की फसल और पानी की खपतधान (चावल) एक ऐसी फसल है जो पानी की अधिक आवश्यकता वाली फसलों में शुमार है। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, एक हेक्टेयर धान की फसल को पूरे मौसम में औसतन 1200-1500 मिमी पानी की जरूरत होती है। ग्रीष्मकालीन धान, जो मार्च से जून के बीच उगाई जाती है, मानसून के अभाव में पूरी तरह से सिंचाई पर निर्भर करती है। इसमें प्रति हेक्टेयर 5000-6000 क्यूबिक मीटर पानी की खपत हो सकती है, जो बोरवेल और नलकूपों से निकाला जाता है। छत्तीसगढ़ में ग्रीष्मकालीन धान का रकबा बढ़ने से भूजल दोहन में तेजी आई है। उदाहरण के लिए, एक अध्ययन में पाया गया कि धान की खेती वाले क्षेत्रों में भूजल स्तर प्रतिवर्ष 1-2 फीट तक नीचे जा रहा है। यह स्थिति छत्तीसगढ़ सहित सरगांव परिक्षेत्र में पेयजल संकट को जन्म दे रही है, क्योंकि गर्मियों में जब पानी की माँग चरम पर होती है, तब भूजल ही एकमात्र स्रोत बचता है।
समस्या का ऐसे होगा समाधान
वैज्ञानिक तथ्य और लाभ ग्रीष्मकालीन धान की खेती पर रोक लगाना और फसल चक्र में परिवर्तन लाना इस संकट का एक प्रभावी समाधान हो सकता है। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, कम पानी वाली फसलों को अपनाने से भूजल पर दबाव कम होता है और मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है। उदाहरण के लिए:मक्का– प्रति हेक्टेयर 500-800 मिमी पानी की आवश्यकता होती है, जो धान की तुलना में 50-60% कम है।दालें(उड़द,मूंग) – ये फसलें 300-500 मिमी पानी में उगाई जा सकती हैं और नाइट्रोजन फिक्सेशन के कारण मिट्टी को समृद्ध करती हैं। बाजरा– यह 200-400 मिमी पानी में उगने वाली सूखा-सहिष्णु फसल है, जो गर्मियों के लिए उपयुक्त है।तिलहन (सोयाबीन, मूंगफली)– इनकी पानी की माँग 400-600 मिमी होती है और ये आर्थिक रूप से लाभकारी भी हैं।फसल चक्र परिवर्तन का एक उदाहरण उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र से लिया जा सकता है, जहाँ धान की जगह दलहन और तिलहन फसलों को बढ़ावा देने से भूजल स्तर में सुधार हुआ है। वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि धान की तुलना में इन फसलों से पानी की बचत के साथ-साथ मिट्टी का क्षरण भी कम होता है। इसके अलावा, कम पानी वाली फसलों को ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी आधुनिक सिंचाई तकनीकों से उगाया जा सकता है, जो पानी की खपत को 30-50% तक कम करती हैं।
शासन को बनानी होगी ठोस नीति
शासन को ग्रीष्मकालीन धान की खेती पर रोक लगाने के लिए ठोस नीतियाँ बनानी चाहिए। इसके लिए
ग्रीष्मकालीन धान पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ किसानों को कम पानी वाली फसलों के लिए सब्सिडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रदान कर,पशुपालन, मछली पालन और बागवानी जैसे विकल्पों को बढ़ावा देकर, जो पानी पर कम निर्भर हों।भूजल संरक्षण अधिनियम को सख्ती से लागू करके और अवैध बोरवेल ड्रिलिंग पर रोक लगाकर इस समस्या से निजात पाया जा सकता है।पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में धान की अत्यधिक खेती से भूजल संकट को देखते हुए वहाँ भी फसल विविधीकरण की पहल शुरू की गई है। राज्य में भी इसी तरह के कदम प्रभावी सिद्ध हो सकते हैं।वर्षा जल संचयन और जन जागरण वर्षा जल संचयन भूजल स्तर को पुनर्जनन करने का सबसे प्रभावी तरीका है। छत्तीसगढ़ में मानसून के दौरान अच्छी बारिश होती है, लेकिन इस पानी का अधिकांश हिस्सा बहकर बेकार चला जाता है। इसे संचय करने के लिए प्रत्येक खेत में छोटे तालाब बनाना, जो वर्षा जल को संग्रहित करें और सूखे मौसम में सिंचाई के लिए उपयोग हों। नदियों के आसपास छोटे चेक डैम बनाकर जल प्रवाह को रोकना और भूजल रिचार्ज करना।रेनवाटर हार्वेस्टिंग के द्वारा गाँवों में छतों से वर्षा जल संचयन प्रणाली स्थापित करना। अनुपजाऊ भूमि पर परकोलेशन टैंक बनाकर पानी को जमीन में रिसने देना।जन जागरण के लिए स्थानीय समुदाय, स्कूलों, और पंचायतों को शामिल करना जरूरी है। अभियानों के जरिए लोगों को पानी की बर्बादी रोकने, कम पानी वाली फसलों को अपनाने और जल संचयन की तकनीकों के बारे में जागरूक करना चाहिए। ग्राम सभाओं में वैज्ञानिक तथ्यों और सफल उदाहरणों (जैसे राजस्थान के अलवर में जल संचयन की सफलता) को साझा करना प्रभावी हो सकता है।
सरगांव क्षेत्र ही नहीं वरन पूरे छत्तीसगढ़ में पानी की समस्या को हल करने के लिए ग्रीष्मकालीन धान की खेती पर रोक, फसल चक्र में वैज्ञानिक परिवर्तन, और वर्षा जल संचयन अत्यंत आवश्यक हैं। धान की खेती में पानी की भारी खपत और भूजल पर इसके दुष्प्रभाव को देखते हुए शासन को तत्काल कदम उठाने चाहिए। साथ ही, जन जागरण के माध्यम से लोगों को जल संरक्षण की महत्ता समझानी होगी। यदि समय रहते ये प्रयास किए गए, तो न केवल भूजल स्तर में सुधार होगा, बल्कि पेयजल संकट से भी राहत मिलेगी। “जल है तो कल है” का नारा तभी सार्थक होगा, जब हम आज इस दिशा में ठोस कदम उठाएँ।
नगर सहित ग्रामीण अंचलों में पेयजल आपूर्ति ठप्प
गिरते भूजल स्तर का असर नगर सहित आसपास के ग्रामीण अंचलो में देखा जा रहा है जंहा पेयजल आपूर्ति ठप्प पड़ते जा रही है और नागरिकों को पीने के पानी के लिए भी सोचना पड़ रहा। नगर में पेयजल आपूर्ति के लिए बिछे हुए पाइपलाइन तक पानी चढ़ ही नही पा रहा और ऑपरेटर नागरिकों को जवाब देते परेशान नौकरी छोड़ने की बाते करते नज़र आ रहे।
