दीपक मितल, प्रधान संपादक, छत्तीसगढ़
दल्लीराजहरा। धार्मिक सौहार्द की मिसाल बनी नगरी दल्लीराजहरा में ईद-उल-अजहा का पर्व पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया गया। मुस्लिम समाज के लोगों ने एक-दूसरे को गले लगाकर ईद की मुबारकबाद दी और अमन-चैन की दुआ मांगी।
इस पावन मौके पर मोजामा मस्जिद रेलवे कॉलोनी में हाफिज अब्दुल बशीर और नायब इमाम अकीक नूरी की अगुवाई में ईद की नमाज अदा की गई। हाफिज नसीम रजा ने ईद-उल-अजहा की अहमियत और कुर्बानी के पीछे की भावना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि—
“कुर्बानी अल्लाह की इबादत है, इज्जत या दिखावे का जरिया नहीं। जब बंदा दिल से अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी देता है, तभी वह कबूल होती है।”
उन्होंने कहा कि बेशक अल्लाह दिलों के हाल जानता है। कुर्बानी में नीयत शुद्ध होनी चाहिए, वरना उसका सवाब नहीं मिलेगा।
कुर्बानी का इतिहास और पैगंबर की आजमाइश
नमाज के बाद दी गई तकरीर में हाफिज नसीम रजा ने हजरत इब्राहीम (अ.) और हजरत इस्माईल (अ.) के किस्से को याद किया, जिसमें अल्लाह ने हजरत इब्राहीम को अपने बेटे की कुर्बानी देने का हुक्म दिया था। यह अल्लाह की राह में सबसे बड़ी आजमाइश थी, जिसे उन्होंने बिना झिझक कबूल किया।
“यह पर्व हमें सिखाता है कि जब अल्लाह का हुक्म हो, तो बंदा अपनी पसंद-नापसंद से ऊपर उठकर सिर्फ उसकी रजा के लिए सब कुछ कुर्बान कर दे।”
कुर्बानी का असल मकसद
बयान में यह भी बताया गया कि अल्लाह को न गोश्त चाहिए, न खून। वह तो सिर्फ देखता है कि उसकी राह में कौन सच्चे दिल से कुर्बानी करता है और कौन दिखावे के लिए।
सामाजिक सहभागिता और भाईचारे का संदेश
इस मौके पर मुस्लिम समाज के प्रमुख लोग—शेख नय्यूम साहब, शेख नबी खान (सोजू भाई), इजराइल शाह, हाफिज नसीम रजा, मो. इमरान, मीर रफीक अली, अशरफ मेमन, साजिद खान, अब्दुल जब्बार, राजा कादरी, आरिफ भाई, मो. इकबाल (भुरु भाई), कादिर भाई, रफीक भाई, सद्दाम, शमशेर अली, शोएब, रिजवान, मुस्तफा सहित अनेक लोगों की उपस्थिति रही। सभी ने मिलजुल कर ईद का त्योहार शांति और भाईचारे के साथ मनाया।
तीन दिनों तक चलता है कुर्बानी का सिलसिला
ईद-उल-अजहा के दिन से शुरू होकर तीन दिनों तक कुर्बानी की रिवायत निभाई जाती है। समाज के लोगों ने अल्लाह की रजा के लिए जानवरों की कुर्बानी दी और जरूरतमंदों में गोश्त बांटा।
इस पर्व ने एक बार फिर साबित किया कि ईद न सिर्फ इबादत का दिन है, बल्कि समाज में आपसी सहयोग, सेवा और त्याग की भावना को मजबूत करने का भी अवसर है।
