दीपक मितल, प्रधान संपादक, छत्तीसगढ़
रायपुर। छत्तीसगढ़ में फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर शासकीय नौकरियों में नियुक्ति का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार कई विभागों में ऐसे कर्मचारी कार्यरत हैं, जिन्होंने फर्जी दस्तावेजों के सहारे सरकारी नौकरी पाई है। वहीं, असल में पात्र और योग्य अभ्यर्थी बेरोजगारी की मार झेलने को मजबूर हैं।
पात्रों के अधिकारों पर हमला, जनता में गहरा आक्रोश
इस खुलासे के बाद स्थानीय युवाओं और सामाजिक संगठनों में गहरा आक्रोश है। उनका कहना है कि यह न केवल योग्य अभ्यर्थियों के हक का अपमान है, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था की पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
“योग्यता होते हुए भी नौकरी न मिलना अन्याय है, और ये फर्जी नियुक्तियाँ हमारी मेहनत पर तमाचा हैं,” — एक स्थानीय युवा अभ्यर्थी
मुख्यमंत्री और कलेक्टर को सौंपा गया ज्ञापन
आक्रोशित युवाओं और जनप्रतिनिधियों ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय और बालोद कलेक्टर श्रीमती दिव्या मिश्रा को ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में फर्जी प्रमाणपत्रधारियों की तत्काल जांच कर सेवा से बर्खास्तगी और पात्र अभ्यर्थियों को न्याय दिलाने की मांग की गई है।
विभागों की चुप्पी पर भी उठे सवाल
स्थानीय संगठनों का कहना है कि संबंधित विभागों की निष्क्रियता और चुप्पी ने फर्जी दस्तावेजधारियों के हौसले बुलंद कर दिए हैं। यह सवाल अब उठने लगे हैं कि:
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क्या नियुक्तियों के समय प्रमाणपत्रों की जांच केवल औपचारिकता है?
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कब तक योग्य उम्मीदवारों का हक छीना जाएगा?
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क्या ऐसे मामलों में लिप्त अफसरों की भी जवाबदेही तय होगी?
आंदोलन की चेतावनी
यदि एक सप्ताह के भीतर इस मामले में ठोस जांच और कार्रवाई नहीं की गई, तो जन आंदोलन की चेतावनी दी गई है। स्थानीय संगठनों का कहना है कि दोषियों के साथ-साथ ढिलाई बरतने वाले अधिकारियों के विरुद्ध भी मोर्चा खोला जाएगा।
“यह केवल दल्लीराजहरा या बालोद का मुद्दा नहीं है, बल्कि पूरे प्रदेश की प्रशासनिक प्रणाली की साख का सवाल है,” — सामाजिक कार्यकर्ता
शासन के लिए अग्नि परीक्षा
यह मामला छत्तीसगढ़ सरकार के लिए न्याय, पारदर्शिता और जवाबदेही की एक परीक्षा बन चुका है। यदि ऐसे फर्जीवाड़ों पर सख्ती से कार्रवाई नहीं हुई, तो इससे न केवल योग्यता की हत्या होगी, बल्कि जनता का शासन से भरोसा भी टूट सकता है।
