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“बंदूक छोड़ कलम थामी”: नक्सल क्षेत्र के बच्चे ‘लियोर ओयना’ योजना से बदल रहे अपनी किस्मत

“बंदूक छोड़ कलम थामी”: नक्सल क्षेत्र के बच्चे ‘लियोर ओयना’ योजना से बदल रहे अपनी किस्मत
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Deepak Mittal

रायपुर/नई दिल्ली।
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जैसे नक्सल प्रभावित इलाकों से निकलकर बच्चों ने अब बंदूक की जगह कलम पकड़ ली है। राज्य सरकार की अभिनव योजना ‘लियोर ओयना’—जिसका मतलब होता है ‘नई सुबह’—इन बच्चों के लिए सचमुच एक नई उम्मीद लेकर आई है।

इस योजना के तहत बीजापुर के उसूर और गंगालूर विकासखंड के बच्चों को रायपुर लाया गया है, जहां उन्हें शिक्षा, सुरक्षा, पोषण, काउंसलिंग, कौशल विकास और करियर मार्गदर्शन जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं। कभी जो बच्चे नक्सलियों के खौफ के साये में जीते थे, आज वे आत्मविश्वास से डॉक्टर, इंजीनियर और अफसर बनने के सपने देख रहे हैं।

क्या है ‘लियोर ओयना’ योजना?

  • शिक्षा और काउंसलिंग के जरिए बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की पहल

  • नक्सल हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों के बच्चों को राजधानी में लाकर उज्जवल भविष्य के लिए तैयार करना

  • मानसिक और सामाजिक पुनर्वास पर जोर

  • सुरक्षा, संस्कार और संवेदना के माहौल में जीवन जीने का अवसर

बच्चे बोले: अब हम डरते नहीं, आगे बढ़ते हैं

नवा रायपुर में जब इन बच्चों से मुलाकात हुई तो उनकी आंखों में आत्मविश्वास और होंठों पर मुस्कान देखकर सभी अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता भावुक हो गए। कई बच्चों ने कहा कि वे अब डॉक्टर, शिक्षक या पुलिस अधिकारी बनकर अपने गांव की सेवा करना चाहते हैं।

सामाजिक बदलाव की मिसाल बन रही योजना

‘लियोर ओयना’ केवल एक योजना नहीं, बल्कि नक्सलवाद के खिलाफ सामाजिक प्रतिरोध की मिसाल बन रही है। यह मॉडल देशभर में यह संदेश दे रहा है कि बंदूक नहीं, शिक्षा ही बदलाव का सबसे मजबूत हथियार है।

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Author: Deepak Mittal

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