जे के मिश्र
ब्यूरो चीफ,
नवभारत टाइम्स 24*7in बिलासपुर
कोरबा, 2 अप्रैल 2025। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन को एक वर्ष से अधिक हो गया, लेकिन कोरबा जिले में प्रशासनिक हालात अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रहे हैं। पुलिस महकमे को लेकर एक नया नारा चर्चाओं में है – “नया शुरू नहीं, पुराना खत्म नहीं, कोरबा पुलिस है – चाक-चौबंद!” यह स्लोगन जितना दमदार दिखता है, उतनी ही गंभीरता से इसकी तह में जाने पर कई सवाल खड़े होते हैं।
पाली की घटना ने खोली पोल
हाल ही में पाली में एक कोल लिफ्टर की हत्या से कोयले के काले कारोबार की हकीकत सामने आई है। घटना से स्पष्ट हुआ कि इस अवैध धंधे में कुछ पुलिस कर्मियों की मिलीभगत भी है। आरोप है कि सुरक्षा के नाम पर मोटी रकम की उगाही की जा रही है और रसूखदारों को खुली छूट दी गई है।
डीजल चोरी और कोयले की कालाबाजारी जारी
दीपका और कुसमुंडा क्षेत्रों में डीजल चोरी की घटनाएं आम हैं। कभी-कभार पुलिस कार्रवाई कर लेती है, लेकिन बड़ी मछलियां हमेशा बच निकलती हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, SECL को हर महीने लगभग 5 लाख लीटर डीजल का नुकसान हो रहा है। साथ ही, खदानों से कोयले की अवैध ढुलाई भी उसी तरह जारी है जैसे पूर्ववर्ती सरकार में थी।
कबाड़ चोरी: शोर थमा, चोरी जारी
पूर्व सरकार के कार्यकाल में कबाड़ चोरी को लेकर शोर मचा था। अब शांति है, पर कार्रवाई नहीं। नगर निगम की लाखों की संपत्ति चोरी हो रही है और न पुलिस और न निगम प्रशासन जागरूक है। हाल ही में संजय नगर में ओपन जिम के लोहे के एंगल चोरी हो गए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
यातायात विभाग भी सवालों के घेरे में
जिले की ट्रैफिक पुलिस सिर्फ चालान काटने में मशगूल दिखती है। शहर की सड़कों पर बेतरतीब दौड़ते रेत-ईंट लदे ट्रैक्टर और मिनी ट्रकों पर कोई नियंत्रण नहीं है। व्यस्त चौराहों पर पुलिसकर्मी इन वाहनों के लिए रास्ता बनाते नजर आते हैं।
सट्टेबाजी का खुला बाजार
छत्तीसगढ़ में सट्टा कनेक्शन को लेकर कई बड़े खुलासे हुए, लेकिन कोरबा में वर्षों से चल रही सट्टेबाजी पर कोई खास असर नहीं पड़ा। आईपीएल सीजन में ऑनलाइन और ऑफलाइन सट्टा ज़ोरों पर है। सटोरियों पर कोई शिकंजा नहीं कसा गया है और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं।
थानेदारों के तबादले भी सवालों के घेरे में
कुछ दिन पहले एसपी सिद्धार्थ तिवारी ने जिले के थानों में बड़े स्तर पर तबादले किए थे, लेकिन आदेशों पर अमल नहीं हुआ। आईजी डॉ. संजीव शुक्ला के हस्तक्षेप के बावजूद कुछ थानेदारों ने नए प्रभार नहीं लिए हैं। सवाल उठता है कि क्या ये अधिकारी आदेश की अनदेखी कर रहे हैं या उन्हें किसी का संरक्षण प्राप्त है?
