बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि अविवाहित पुत्री की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर दत्तक पिता का कोई कानूनी अधिकार नहीं होगा, भले ही वे उसके संरक्षक रहे हों और आधिकारिक दस्तावेज़ों में नामिनी के रूप में दर्ज हों। अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में उत्तराधिकार केवल उसकी माता को प्राप्त होगा।
मामला क्या था?
यह मामला रायगढ़ जिले के पुसौर क्षेत्र से जुड़ा है। पुलिस कांस्टेबल पंचराम पटेल की 1999 में मृत्यु हो गई थी। उनकी पत्नी फुलकुमारी पटेल 1993 में ही ससुराल छोड़ चुकी थीं। उनकी इकलौती बेटी ज्योति पटेल को बाद में पंचराम के बड़े भाई खितिभूषण पटेल ने दत्तक लेकर पाला-पोसा और उसकी पढ़ाई-लिखाई की पूरी जिम्मेदारी निभाई।
खितिभूषण की देखरेख में ज्योति को अनुकंपा नियुक्ति भी प्राप्त हुई, लेकिन वर्ष 2014 में अविवाहित ज्योति की असमय मृत्यु हो गई। उसकी बीमा पॉलिसी, बैंक जमा राशि और अन्य लाभों में खितिभूषण का नाम नामिनी के रूप में दर्ज था।
कानूनी लड़ाई और कोर्ट का रुख
बेटी की मृत्यु के बाद खितिभूषण पटेल ने सिविल कोर्ट में उत्तराधिकार के लिए आवेदन किया, लेकिन वह याचिका खारिज कर दी गई। उन्होंने इस आदेश को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट के जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने सिविल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए यह निर्णय सुनाया कि:
“हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत यदि कोई अविवाहित महिला की मृत्यु हो जाती है, और उसके पिता का भी निधन हो चुका है, तो उसकी चल-अचल संपत्ति की एकमात्र कानूनी उत्तराधिकारी उसकी मां होगी। चाहे दत्तक पिता ने पालन-पोषण किया हो या दस्तावेजों में उनका नाम नामिनी के रूप में हो — यह उत्तराधिकार का कानूनी अधिकार नहीं देता।”
नामिनी बनाम उत्तराधिकारी का फर्क
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति का नामिनी होना, उसे स्वचालित रूप से उत्तराधिकारी नहीं बना देता। नामिनी केवल एक ट्रस्टी की भूमिका निभाता है — वास्तविक लाभार्थी तो उत्तराधिकार कानून के तहत तय होता है।
इस फैसले ने यह साफ कर दिया है कि भावनात्मक या सामाजिक जिम्मेदारी निभाने भर से कानूनी अधिकार नहीं मिल जाते। उत्तराधिकार का निर्धारण केवल विधिक प्रावधानों के आधार पर होता है। इस निर्णय से भविष्य में ऐसे कई मामलों में स्पष्टता आएगी, जहाँ नामिनी और उत्तराधिकारी के अधिकारों को लेकर भ्रम बना रहता है।
