नई दिल्ली : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंकों को बिना सुनवाई के किसी भी लोन लेने वाले शख्स को एकतरफा फ्रॉड की कैटेगरी में डालने से रोक दिया है। आरबीआई ने कहा है कि बैंकों को डिफॉल्टर को 21 दिन का कारण बताओ नोटिस देना चाहिए ताकि खाते को फ्रॉड के रूप में कैटेगराइज्ड करने से पहले उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर मिल सके। 6 करोड़ रुपये के ऊपर के फ्रॉड के लिए सीबीआई को सूचना देनी होगी, जबकि एक करोड़ के ऊपर की धोखधड़ी के लिए राज्य पुलिस को इन्फार्म करना पड़ेगा।
केंद्रीय बैंक ने पिछले साल के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के जवाब में अपने दिशानिर्देशों को संशोधित किया है। आरबीआई ने बैंकों से फ्रॉड रिस्क मैनेजमेंट पर बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीति लागू करने को कहा है, जो बोर्ड की जिम्मेदारियों को निर्दिष्ट करती है।
रिजर्व बैंक ने कहा, “नीति में टाइम बाउंड तरीके से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन सुनिश्चित करने के उपाय भी शामिल होने चाहिए। बैंकों को धोखाधड़ी पर एक समिति बनानी चाहिए, जिसमें एक फुल टाइम डायरेक्टर और कम से कम दो स्वतंत्र या नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर समेत कम से कम तीन बोर्ड सदस्य शामिल हों। समिति की अध्यक्षता स्वतंत्र या गैर-कार्यकारी निदेशकों में से एक द्वारा की जानी चाहिए।”
RBI ने बैंकों से सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्टों के आदेशों की समीक्षा करने को कहा है, जो व्यक्तियों या संस्थाओं को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने और एक तर्कसंगत आदेश जारी करने से पहले उन्हें सूचित करने और उन्हें जवाब देने का अवसर प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं।
नए मानदंडों में 6 महीने के अंदर बैंकों में प्रारंभिक चेतावनी संकेत (EWS) सिस्टम में भी सुधार की आवश्यकता है। ईडब्ल्यूएस को सिस्टम के साथ इंटीग्रेट किया जाना चाहिए और पैरामीट्रिक सिग्नल के अलावा असामान्य पैटर्न की पहचान करने के लिए डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करने की आवश्यकता है।
केंद्रीय बैंक ने 1 करोड़ रुपये की सीमा तय की है, जिसके ऊपर बैंकों को धोखाधड़ी की घटनाओं की सूचना राज्य पुलिस को देनी होगी। प्राइवेट बैंकों को 1 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की सूचना सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय को देनी होगी।
वहीं, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए, सीबीआई को धोखाधड़ी की सूचना देने के लिए 6 करोड़ रुपये की लिमिट जारी है। आरबीआई ने कहा, “कंसोर्टियम लोन के मामले में अगर प्रत्येक के संबंध में अलग-अलग अपराध किए गए हैं और अगर किया गया फ्रॉड उसी धोखाधड़ीपूर्ण कार्य/लेनदेन का हिस्सा नहीं है, तो प्रत्येक कंसोर्टियम सदस्य अलग-अलग शिकायत दर्ज कर सकता है। ऐसे लोन के अन्य मामलों में, केवल एक सदस्य शिकायत दर्ज कर सकता है और अन्य सभी सदस्य आवश्यक सहायता प्रदान कर सकते हैं।”

Author: Deepak Mittal
