शैलेश शर्मा जिला ब्यूरो, रायगढ़ नवभारत टाइम्स 24×7.in मो. 9406308437
रायगढ़। एक ओर छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र धरमजयगढ़ में जमीन और जंगल को लेकर संघर्ष जारी है, वहीं दूसरी ओर बाकारूमा में वर्षों से चल रहा कोयले का काला कारोबार शासन-प्रशासन की आँखों पर पट्टी बांधकर खड़ा है। रैरूमा चौकी से महज 500 मीटर की दूरी पर खुलेआम कोयले की लूट हो रही है — और यह सब दिनदहाड़े, बिना किसी भय के!
धनबाद से आता कोयला, बाकारूमा में होती है लूट!
सूत्र बताते हैं कि पत्थलगांव मुख्य मार्ग से प्लांटों को जा रहे परल कोक से लदे ट्रकों को सुनसान बाउंड्री के भीतर मोड़ दिया जाता है। वहां मजदूर बोरियों में कोक भरते हैं और उसे बेच दिया जाता है। बचा हुआ कोक पानी मिलाकर ट्रकों में दोबारा भर दिया जाता है ताकि वजन में फर्क न दिखे और चोरी पकड़ी न जाए।
यह सब कोई नई बात नहीं — यह अवैध धंधा बीते 10 वर्षों से बेरोक-टोक जारी है!
प्रशासन की चुप्पी, पुलिस की अनदेखी या मिलीभगत?
बड़े सवाल यह हैं:
क्या रैरूमा चौकी को 500 मीटर दूर चल रही कोयले की मंडी नज़र नहीं आती?
क्या माफिया को ‘ऊपर’ से संरक्षण मिला हुआ है?
अगर नहीं, तो अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं?
डाहीडांड में कार्रवाई हुई, तो बाकारूमा अछूत क्यों?
हाल ही में डाहीडांड में चार ट्रकों को अवैध परिवहन के आरोप में राजस्व विभाग ने जब्त कर खनिज शाखा को सौंपा। लेकिन बाकारूमा में कोई कार्रवाई नहीं — क्यों? क्या यहां के माफिया ज्यादा मजबूत हैं?
चौकी प्रभारी का बयान, पर कार्रवाई अब तक अधर में…
जब इस विषय पर चौकी प्रभारी मनकुंवर सिदार से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा,
“बाकारूमा में परल कोक की गतिविधियों की जानकारी मिली है, मैं जांच कर रही हूं।”
लेकिन सवाल अब भी खड़े हैं:
क्या 10 साल की गतिविधि से पुलिस अब तक अनभिज्ञ थी?
क्या यह लापरवाही है या स्पष्ट मिलीभगत?
जांच कब पूरी होगी? कार्रवाई कब होगी? और गुनहगारों पर शिकंजा कब कसेगा?
