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दल्ली-राजहरा जुड़वां खदानों के नाम से विख्यात रहा है, परंतु अब विख्यात समाप्त होने लगा है,,

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दीपक मित्तल बालोद रायपुर 

 

दीपक मित्तल रायपुर, छत्तीसगढ़

दल्ली राजहरा,,दल्ली-राजहरा जुड़वां खदानों के नाम से विख्यात रहा है, परंतु अब विख्यात समाप्त होने लगा है, एक समय था जब दल्लीराजहरा में 1.50 (डेढ़ लाख) की जनसंख्या थी और अब समय है 41,000 की जनसंख्या सिमट कर रह गई है लगभग 1,10,000 (एक लाख,दस हजार लोग) लोग या तो पलायन कर चुके हैं या तो दल्लीराजहरा शहर छोड़ दिए हैं या यह कहा जाए कि लोगों का मोहभंग होने लगा है जब बीएसपी प्रबंधन को शहर वासियों की आवश्यकता थी तब बीएसपी प्रबंधन ने स्वास्थ्य शिक्षा के अलावा अन्य मूलभूत सुविधा दिया था जैसे ही खदानों में आयरन और समाप्त होने लगा बीएसपी ने सभी दी गई सुविधा छीन ली स्वास्थ्य के क्षेत्र में सभी मेडिकल बंद कर दिए गए एक मात्र अस्पताल सिर्फ रेफर केंद्र बनकर रह गया है, दर्जनों शिक्षा के मंदिर स्कूलों को बंद कर दिया गया ,ताला लगा दिया गया बिल्डिंग ढहा दिया गया और जो बीएसपी विख्यात और प्रख्यात के रूप में थी तब बीएसपी से लोगों का मोहभंग होने लगा है,,

 भिलाई इस्पात संयंत्र के लिए लौह अयस्क बंदी खानों के लिए प्रसिद्ध है। दल्ली खदानें की खोज 1900 के आसपास भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पहले भारतीय श्रेणीबद्ध अधिकारी प्रमथ नाथ बोस ने की थी,,

दल्ली-राजहरा जुड़वां खदान है और राजहरा समूह की खदानों का हिस्सा है। ये सेल उद्यम – भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) के लिए कैप्टिव लौह अयस्क खदानें हैं। क्षेत्र से खनन किए गए लौह अयस्क हेमेटाइट और मैग्नेटाइट किस्म के हैं, पड़ोस की अन्य खदानें डोलोमाइट, चूना और अन्य कच्चे माल का उत्पादन करती हैं जिनका उपयोग इस्पात उत्पादन में किया जाता है,,

 

दल्ली-राजहरा दुर्ग से लगभग 83 किमी दक्षिण में है और भारतीय रेलवे के दक्षिण-पूर्वी खंड के अंतर्गत आता है। जबकि दल्ली और राजहरा दोनों में खदानें हैं, आवासीय क्षेत्र मुख्य रूप से राजहरा में है। दल्ली-राजहरा एक आत्मनिर्भर टाउनशिप है, जहां बीएसपी ने अस्पताल और काफी संख्या में शैक्षणिक संस्थान स्थापित किए थे और और अब सभी बंद कर दिया गया,,,

1970 के दशक में श्रमिक अधिकार आंदोलन के परिणामस्वरूप दल्ली-राजहरा प्रमुखता से उभरा था,2024 में बिखर गया,,

 

दल्लीराजहरा में खदानें खुली खदानें हैं और शाम के समय जब कोई बस्ती में प्रवेश करता है तो पहाड़ियों पर हजारों जगमगाती रोशनी का मार्मिक दृश्य दिखाई देता था और अब शहर की सुंदरता समाप्त होने लगी है,,

 

 

 

दल्लीराजहरा की जनसंख्या पर एक नजर,,

भारत की जनगणना 2011 के अनुसार दल्ली राजहरा की जनसंख्या 44,363 है। यहां केवल 11,018 परिवार हैं, जिनमें आवासहीन भी शामिल हैं, जो जनसंख्या में गिरावट की प्रवृत्ति को दर्शाता है।

2001 की भारत की जनगणना के अनुसार 

 दल्ली-राजहरा की जनसंख्या 50,615 थी, जनसंख्या में पुरुष 52% और महिलाएँ 48% हैं। दल्ली-राजहरा की औसत साक्षरता दर 68% है, जो राष्ट्रीय औसत 59.5% से अधिक है। पुरुष साक्षरता 77% है और महिला साक्षरता 58% है,दल्ली-राजहरा में, 14% आबादी 6 साल से कम उम्र की है, यह प्रमाणित आंकड़े राजस्व और बीएसपी विभाग से सूचना के अधिकार पर लिए गए हैं,, बीएसपी प्रबंधन की नाकामी की वजह से शहर की सुंदरता पर जहां विराम लग गया है वहीं दूसरी ओर काली निगाहों के चलते शहर में व्यापार समाप्त होने लगा है बीएसपी प्रबंधन मस्त है और शहरवासी पस्त हो गए हैं,,,

 

क्या कहते हैं जिम्मेदार अधिकारी जनप्रतिनिधि,,,,

बीएसपी प्रबंधन की कार्यप्रणाली को लेकर श्रमिक नेता कंवलजीत सिंह मान कहते हैं कि बीएसपी प्रबंधन को नगर वासियों के साथ-साथ बीएसपी कर्मचारियों अधिकारियों के लिए मूलभूत सुविधा दिया जाना चाहिए बीएसपी प्रबंधन क्षेत्र वासियों के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है जिसको लेकर समय-समय पर हमारे संगठन के द्वारा आवाज उठाई जाती रही है आगे भी मूलभूत सुविधा को लेकर मांग किया जाता रहेगा,,

 

शहर के जनप्रतिनिधि उपेंद्र कुमार साहू, चरण कुमार, शैलेंद्र, प्रकाश कुमार ,नव्या आदि लोगों ने कहा कि बीएसपी प्रबंधन की कार्यप्रणाली बेहद खराब है और आज नगर वासी ठगा महसूस कर रहे हैं बीएसपी प्रबंधन ने शहर की खदानों से आयरन और उत्खनन और परिवहन कर शहर वासियों के साथ उ व्यवहार किया है,, आज भी लाल पानी से निजात नहीं मिल पाया है,,,

बीएसपी महाप्रबंधक (आई ओ सी) आर बी गहरवाल कहते हैं कि बीएसपी प्रबंधन के द्वारा उनके कार्य क्षेत्र दायरे के अनुसार लगातार सीएसआर और डीएमएफ के माध्यम से मूलभूत सुविधा और अन्य सभी सुविधाएं दिया जा रहा है स्वास्थ्य, शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रहे हैं आगे भी करेंगे और लाल पानी से निजात दिलाने के लिए बड़ी योजनाएं चल रही है,,

*(दीपक मित्तल नवभारत टाइम्स 24*7 in प्रधान संपादक रायपुर)*

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Author: Deepak Mittal

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