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अंधाधुंध हो रही पेड़ों की कटाई ने छीन लिया गौरेया का घरौंदा..

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Deepak Mittal

निर्मल अग्रवाल ब्यूरो प्रमुख मुंगेली 8959931111

मुंगेली – आधुनिकता की दौड़ में शहर का तेजी से विस्तार हो रहा है. लेकिन इसके चलते प्रकृति और जीव-जंतुओं का अस्तित्व संकट में पड़ता जा रहा है। विश्व गौरेया दिवस 20 मार्च के मौके पर पर्यावरण प्रेमियों ने चिंता जताई है कि शहरों में गौरेया की संख्या लगातार घट रही है। जिला जनसंपर्क विभाग मुंगेली के 60 वर्षीय संतोष कुमार कोरी ने बताया कि पहले बाजार जाते हुए रास्ते भर गौरेया दाना चुगती दिख जाती थी। अब तो बच्चों को यह चिडिया यदा कदा ही दिखती है। उनका कहना है कि यदि जल्द ही इस दिशा में खास प्रयास नहीं किया गया तो आने वाले समय में यह किताबों में ही दिखाई देंगी। जिस तरह से पेड़ों की कटाई हो रही है। उसकी तुलना में यह प्रयास अपर्याप्त नजर आते है।

*पेड़ों की कटाई ने छीना घरौंदा*

    एक समय था जब शहरों की मुख्य सड़कों से लेकर गलीमोहल्लों तक गौरेया की चहचहाहट सुनाई देती थी। लेकिन अब कांक्रीट के जंगल में तब्दील होते शहरों में इनका बसेरा छिन गया है। पेड़ों की कटाई और हरियाली की कमी ने न सिर्फ इनके घोंसले खत्म किए, बल्कि इनके लिए भोजन की उपलब्धता भी कम कर दी। पर्यावरणविदों का कहना है कि आधुनिक इमारतों में पारंपरिक घरों की तरह गौरेया के लिए जगह नहीं बची है। कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग और प्रदूषण भी इनके लिए जानलेवा साबित हो रहा है।

*पर्यावरण चक्र पर पड़ेगा बुरा असर*

     गौरेया न केवल हमारी सांस्कृतिक यादों का हिस्सा है, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र में, भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। यह कीटों को नियंत्रित करने और पौधों के बीज फैलाने में मदद करती है। वहीं खाकर पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। बर्ड के क्षेत्र में शोधकर्ता बताते हैं कि गौरेया की कमी से खाद्य श्रृंखला प्रभावित होगी। इससे कीटों की आबादी बढ़ेगी, जिससे फसलों को नुकसान हो सकता है। जानकारों का कहना है कि कबूतरों की संख्या में इजाफा होने की वजह से भी गौरैया की संख्या कम हो चली है।

*संरक्षण की जरूरत*

विश्व गौरेया दिवस पर विशेषज्ञ और प्रकृति प्रेमी इस पक्षी के संरक्षण की अपील कर रहे हैं। इसके लिए पेड़-पौधों को बचाने, शहरी क्षेत्रों में हरियाली बढ़ाने और कृत्रिम घोंसलों के इस्तेमाल जैसे कदम उठाए जाने की जरूरत है। लोगों से भी अपील की जा रही है कि वे अपने घरों के आसपास पानी और दाने की व्यवस्था करें, ताकि गौरेया को फिर से शहरों में बसने का मौका मिले।

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Author: Deepak Mittal

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