जे के मिश्र
ब्यूरो चीफ
नवभारत टाइम्स। 24*7 in बिलासपुर
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ सरकार जहां एक ओर सुशासन तिहार के ज़रिए जनता को योजनाओं का लाभ सीधे पहुंचाने की पहल कर रही है, वहीं दूसरी ओर बिलासपुर खाद्य विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। भौतिक सत्यापन के नाम पर विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में भारी गड़बड़ियों की खबरें सामने आ रही हैं।
खाद्य विभाग के अधिकारी जहां जवाबदेही से बचते नज़र आ रहे हैं, वहीं शासकीय उचित मूल्य की दुकानों में नियमों की खुलेआम अनदेखी हो रही है। आरोप है कि कई दुकानदार राशन वितरण की जगह नगदी सौंप रहे हैं और विभाग इस पर मौन साधे हुए है।
राशन की जगह थमाया जा रहा नगद
ग्रामीण और शहरी इलाकों में राशनकार्ड धारकों से अंगूठा लगवाकर उन्हें चावल की जगह नगदी देकर वापस भेजा जा रहा है। कई दुकानों में यह प्रथा आम होती जा रही है, जिससे शासन की खाद्य सुरक्षा योजना की भावना को ठेस पहुंच रही है। कुछ स्थानों पर तो हितग्राहियों पर नगदी लेने का दबाव भी डाला जा रहा है।
गोंडपारा इलाके की एक दुकान में जब यह मामला सामने आया तो मीडिया में वीडियो वायरल हुआ, बावजूद इसके खाद्य विभाग की ओर से किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई। खाद्य निरीक्षक और नियंत्रक, दोनों ही रसूखदार दुकानदारों पर कार्रवाई करने से कतराते दिख रहे हैं।
अधिकारियों की चुप्पी और संरक्षण
बिरकोना क्षेत्र की एक सहकारी सेवा समिति के अंतर्गत आने वाली राशन दुकान के विक्रेता द्वारा मार्च में कई हितग्राहियों से अंगूठा लगवाकर राशन नहीं बांटा गया। खुलासे के बाद भी खाद्य निरीक्षक द्वारा उसे ‘साफ़-सुथरा’ बताकर भौतिक सत्यापन रिपोर्ट क्लियर कर दी गई।
स्थानीय पत्रकारिता की खबरों के दबाव में जब कार्रवाई की आशंका बढ़ी, तो दुकानदार हितग्राहियों के घर जाकर सुबह-सुबह माफ़ी मांगते और पैर पकड़कर राशन देते नजर आया। इससे स्पष्ट है कि विभागीय संरक्षण के बल पर भ्रष्टाचार को खुलेआम अंजाम दिया जा रहा है।
पीडीएस चावल का खुले बाज़ार में व्यापार
शहर के गोंडपारा, तालापारा, कुम्हारपारा, मिनी बस्ती, मगरपारा जैसे क्षेत्रों में पीडीएस चावल खुलेआम बाज़ार में 22 से 25 रुपए प्रति किलो बेचा जा रहा है। दुकानदार मनमानी कर रहे हैं और अधिकारी आंखें मूंदे बैठे हैं।
सुशासन की राह में रोड़ा बन रहे जिम्मेदार
जहां सरकार समाधान शिविर लगाकर आम जनता को राहत देने का प्रयास कर रही है, वहीं खाद्य विभाग के कुछ अफसर उसी व्यवस्था को पंगु बना रहे हैं। यह स्थिति प्रशासनिक सुशासन की साख को सीधी चुनौती है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या जिला प्रशासन इस लापरवाही और संरक्षण की नीति पर कोई ठोस निर्णय लेगा? या फिर सुशासन के इस अभियान को विभागीय उदासीनता यूं ही खोखला करती रहेगी?
