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समाज की मुख्यधारा से हुए दूर देवार-नट जाति के लोग….

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Deepak Mittal

मूलभूत आवश्यकताओं के लिए दर-दर की ठोकरें

नृत्य कला बना जीवन-बसर का सहारा

निर्मल अग्रवाल ब्यूरो प्रमुख मुंगेली 895993111

सरगांव-बिहार के रोहतास जिले के नटवार क्षेत्र से हाल ही में पकड़ी गई 41 नाबालिग लड़कियों के मामले से ताल्लुकात रखती ये खबर जिसमे पकड़ी गई लड़कियों में कुछ मुंगेली जिले के नगर पंचायत सरगांव से भी है। जैसे ही यह मामला सामने आया कि बिहार राज्य के रोहतास जिले के नटवार क्षेत्र में रेड लाइट एरिया से छतीसगढ़ की 41 नाबालिग लड़कियों को पकड़ा गया है जिनमे कुछ मुंगेली जिले के सरगांव की रहने वाली है जानकारी के लिए परिजनों से मुलाकात की गई तो सच्चाई कुछ और ही बयां कर रहा था जो पूरी तरह से चौंकाने वाला था।

बेबसी के कारण, मजबूरी और सच्चाई

दरअसल सरगांव के वार्ड नम्बर 13 जो कि देवारपारा के नाम से जाना जाता है में रहने वाले देवार और नट जाति के लोग बद से बदतर जीवन जीने को मजबूर हैं। ये आज समाज की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं और आधुनिकता के इस दौर में भी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं और समस्या ग्रसित जीवन जीने को मजबूर है।
आधुनिक समय में भी ये लोग आदमी युग जैसी जिंदगी जीने को मजबूर हैं।

गरीबी से ग्रसित, टूटे-फूटे मकान, कपड़ों से बने दरवाजे, गंदगी के बीच जीवन यापन कर रहे जो कोई और नही बल्कि हमारे अपने समाज के ही लोग हैं इन्हें वोट डालने का अधिकार तो मिला है, लेकिन इनका आरोप है कि शासकीय योजनाओं का लाभ जैसे मिलना चाहिए, वैसे नहीं मिल रहा है जिसका नतीजा आज ये देखने को मिल रहा।
आय के अन्य कोई स्त्रोत न होने के कारण इन्हें अब अन्य राज्यो में जाकर अपनी नृत्य कला के माध्यम से पेट पालने का कार्य किया जा रहा है।


परिजनों ने बताया कि उनके समाज की लगभग 6-7 महिलाएं डांस के लिए अन्य राज्यों में जाती हैं और अपने बच्चों को भी सिखाने के लिए साथ ले जाती हैं। बिहार में पकड़ी गई लड़कियां इन्हीं महिलाओं के बच्चे थे, जबकि महिलाओं को छोड़ दिया गया। अब डर की वजह से महिलाएं घर वापस नहीं आ रही हैं।


स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस उन्हें गलत साबित कर रही है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। उनका कहना है कि नृत्य करना उनकी परंपरा रही है और आय का कोई दूसरा साधन नहीं होने के कारण वे सालों से ठेकेदारों के माध्यम से अन्य राज्यों में जाकर कमाई कर रहे हैं।


इन लोगों को रोज़ के हिसाब से 300 रुपये दिए जाते हैं, जिन्हें कई महीनों तक जोड़कर वे त्योहारों में घर लौटते हैं और अपनी जरूरतें पूरी करते हैं। बिहार में हुई कार्रवाई को लेकर मुंगेली पुलिस ने पुष्टि की है कि सरगांव की 2 लड़कियां इस मामले में शामिल थीं।


शिक्षा की कमी और आय का कोई अन्य साधन न होने के कारण भीख मांगना, कबाड़ इकट्ठा करना और नृत्य करना इन लोगों की मजबूरी बन गई है।


महिलाएं अपने बच्चों को लेकर अन्य राज्यों में चली जाती हैं और कई महीनों तक डांस ऑर्केस्ट्रा में काम करके अपनी कमाई लेकर लौटती हैं।यहां रहने वाले लोगों ने बताया कि अधिकांश लोगों के आधार कार्ड, राशन कार्ड जैसे आवश्यक दस्तावेज नहीं बने हैं, जिसके कारण वे सरकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों ने बताया कि उनकी जाति के बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता है और समाज उन्हें घृणा और हेय की दृष्टि से देखता है जिसकी मुख्य वजह उनकी गरीबी और मैले कुचेल कपड़े है।

नवभारत टाइम्स ने किया था पहले ही इनके अधिकार को लेकर खबर प्रकाशित

नवभारत टाइम्स 24×7.in ने जुलाई 2024 में 30 वर्षो से तत्कालीन ग्राम पंचायत में घुमन्तु देवार जाती जो मुलतः अनुसूचित जाति में आती है के अभावों और अधिकारों को लेकर खासकर शिक्षा को लेकर खबर प्रकाशन किया गया था किंतु वह भी सम्भवतः इनके अधिकारों की भांति अनदेखा कर दिया गया समय रहते विभाग ने अगर सही कदम उठाया होता तो यथास्थिति में बदलाव देखा जा सकता है इन्हें अधिकारों से वंचित रखके क्या योजनाओं की सही क्रियान्वयन हो पा रहा जटिल प्रश्न लिए हुए है?

यहाँ देखें ख़बर जो पहले प्रकाशित की गई थी 👇👇

किये जा सकते है सुधार

इन पिछड़ी हुई अनुसूचित जाति के देवार और नट लोगों के लिए हर वर्ग को आगे आना होगा जिससे इनका उत्थान हो सके समाज की मुख्य धारा से जोड़ने दिनचर्या में परिवर्तन लाने वोट बैंक की राजनीति से परे मानव को मानव मान इनको इनके अधिकार दिलाकर सही हकदार को योजनाओं का लाभ दिलाने की आवश्यकता है ताकि इनका पलायन रुक सके और जीविका आम जनमानस की तरह सुचारु ।

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Author: Deepak Mittal

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