महाराष्ट्र में महायुति की महाविजय पर कहीं कोई शक नहीं मगर झारखंड में हेमंत सोरेन की वापसी भी कई मायनों में ऐतिहासिक है. झारखंड के राज्य बनने के बाद 24 बरस में पहली बार कोई सरकार दोबारा चुनी गई है. झारखंड मुक्ति मोर्चा की जीत और भाजपा की हार के कारण भले आदिवासी अस्मिता, जेल जाने के बाद की सहानुभूति, महिला, किसान, कर्मचारियों को सोरेन सरकार की ओर से दी गई आर्थिक मदद; और बांग्लादेशी घुसपैठ, लव जिहाद, लैंड जिहाद जैसे सवालों पर बीजेपी की अधिक निर्भरता और आक्रामकता बताई जा रही हो पर नतीजे का एक सिरा उस ओर भी जा रहा है जब कुछ बाहरी कारण चुनाव को प्रभावित कर देते हैं.
जहां पहले और दूसरे की लड़ाई में कोई तीसरा फैक्टर इस अंदाज में उभरे कि वह पहले और दूसरे का खेल बना-बिगाड़ दे. झारखंड में भाजपा के उम्मीदों की तुलना में जो उसे निराशा हाथ लगी, उसकी बड़ी वजह एक नई पार्टी और नेता का उदय है, जिसकी चर्चा थोड़ी कम हो रही. झारखंड में ये तीसरा फैक्टर धाकड़ नौजवान कुर्मी नेता जयराम महतो और उनकी नई नवेली पार्टी – झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा रही. जयराम महतो और उनकी पार्टी ने भले 1 सीट जीता मगर कम से कम 33 सीटों पर तीसरे स्थान, 2 पर दूसरे पायदान पर रहकर एक नई राजनीतिक लकीर खींच दी. जयराम ने इस चुनाव में भाजपा और आजसू की लंका किस तरह लगा दी, उसकी कुछ मिसालें.
1. झामुमो के गढ़ डुमरी में जयराम महतो की जीत
गिरिडीह जिले की डुमरी विधानसभा – जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा की तूती बोलती थी. 2005 के बाद हुए पांच चुनावों में जिस सीट पर लगातार झामुमो जीत दर्ज करती रही, उस सीट पर 29 साल के जयराम ने इस चुनाव में बड़ा उलटफेर कर दिया. महतो ने करीब 11 हजार वोटों के अंतर से यहां झामुमो के दिग्गज दिवंगत नेता जगरनाथ महतो की पत्नी बेबी देवी को हरा दिया. राज्य की 81 सीटों में से ये इकलौती सीट है जहां लोगों ने एनडीए और इंडिया गठबंधन के बजाय एक तीसरे शख्स को अपना प्रतिनिधि चुना.
2. चंदनकियारी, बेरमो में BJP के दिग्गजों को हराया
जयराम महतो दो सीट से चुनाव लड़ रहे थे. डुमरी के अलावा बोकारो जिले की बेरमो विधानसभा – जहां दो बड़ी राजनीतिक शख्सियत – कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे दिवंगत राजेन्द्र सिंह के बेटे कुमार जयमंगल सिंह और भारतीय जनता पार्टी के रविन्द्र पांडेय आमने-सामने थे, वहां जयराम महतो ने एंट्री ली. वे खुद तो नहीं जीते मगर दूसरे नंबर पर रहकर रविन्द्र पांडेय की हार जरूर सुनिश्चित करा दी. पांडेय को तकरीबन 58 हजार वोट मिले तो महतो करीब 61 हजार वोट ले आए.
इसी तरह, बोकारो जिले की ही चंदनकियारी विधानसभा सीट – यहां जीत की हैट्रक लगाने का ख्वाब बुन रहे अमर बाउरी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा के कैंडिडेट अर्जुन रजवार से भी पीछे रह गए. रजवार जहां 56 हजार 294 वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे तो बाउरी 56 हजार 91 वोट के साथ तीसरे नंबर पर लुढ़क गए. इस तरह दो सीटों पर भाजपा के मजबूत प्रत्याशियों को तीसरे नंबर पर धकेलकर और खुद मुकाबले में आ महतो की पार्टी ने भाजपा के सूरमाओं की लुटिया डूबो दी.
3. जयराम की पार्टी ने 14 सीटों पर BJP का किया ‘जय रामजी की’
केवल पहले और दूसरे स्थान पर नहीं, जयराम महतो की पार्टी ने असल खेल भाजपा गठबंधन का तीसरे नंबर पर रहकर बिगाड़ा है. महतो की पार्टी कम से कम 33 सीटों पर तीसरे नंबर पर रही. मगर सबसे दिलचस्प बात ये रही कि इन 33 सीटों में से 14 पर महतो की पार्टी के कैंडिडेट्स की मौजूदगी ने जीत और हार को प्रभावित कर दिया. इसे यूं समझिए कि जिन 14 सीटों पर महतो के कैंडिडेट्स तीसरे नंबर पर रहे, वहां हारने वाले प्रत्याशी या से भी ज्यादा वोट इन्हें मिल गए.
सबसे दिलचस्प बात ये रही कि इन 14 सीटों में से 11 पर एनडीए (9 – बीजेपी, 3 – आजसू, 1 – जेडीयू) हारी जबकि केवल तीन सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा को नुकसान हुआ. भाजपा बोकारो, गिरिडीह, कांके, खरसांवा, निरसा, सिंदरी और टुंडी समेत कुल 7 सीटें हार गई. इन सीटों पर जीत और हार की अंतर से अधिक महतो की पार्टी के कैंडिडेट्स के वोट आए. इसी तरह, भाजपा की सहयोगी आजसू – ईचागढ़, रामगढ़ और सिल्ली जैसी अपनी मजबूत विधानसभा सीट जितने वोटों से हारी, उससे अधिक यहां महतो की पार्टी वोट ले आई.
केवल भाजपा और आजसू ही नहीं, भाजपा के गठबंधन सहयोगी के तौर पर चुनाव लड़ रहे जनता दल यूनाइटेड के गोपाल कृष्ण पातर तमार विधानसभा सीट पर करीब 24 हजार वोट से हारे. जबकि यहां महती की पार्टी के कैंडिडेट को 27 हजार के लगभग वोट मिला. इस तरह, एनडीए 11 प्रत्याशी सीधे तौर पर महतो की पार्टी के कैंडिडेट्स की मौजूदगी की वजह से धराशायी हो गए. इसकी तुलना में झामुमो को कम नुकसान हुआ. झामुमो को केवल तीन ऐसी सीट – सरायकेला, सिमरिया और लातेहार गंवानी पड़ी जहां महतो की पार्टी जीत-हार के अंतर से अधिक वोट ले आई.
4. आजसू का किया सूपड़ा साफ, मुखिया सुदेश महतो तक हारे
अभी तक झारखंड के कुरमी समाज में सबसे ज्यादा पकड़ सुदेश महतो की पार्टी आजसू का माना जाता था. कहा जाता है कि इस समुदाय की झारखंड में करीब 15 फीसदी आबादी है. भाजपा ने भी सीट समझौते में आजसू को 10 सीट दिया था. मगर आजसू के प्रभाव वाली इन सीटों पर जयराम महतो की पार्टी कुछ इस तरह उभरी कि सुदेश महतो की खुद अपनी सिल्ली की सीट गंवानी पड़ी.
सिल्ली में आजसू के सुदेश महतो करीब 24 हजार वोट से चुनाव हारे जबकि यहां जयराम महती की पार्टी के कैंडिडेट देवेन्द्र नाथ महतो 42 हजार के करीब वोट ले आए. इसी तरह, रामगढ़ में आजसू की सुनीता चौधरी महज 7 हजार के लगभग मत से चुनाव हार गईं. इसी सीट पर जयराम महतो की पार्टी को 71 हजार के करीब वोट मिले. आजसू केवल 1 सीट इस चुनाव में जीत सकी.
रामगढ़ जिले की मांडू से पार्टी के निर्मल महतो जीते जरूर मगर सिर्फ 231 वोट से. गौर करने वाली बात ये रही कि यहां जयराम महतो की पार्टी लगभग 71 हजार वोट ले आई.इस तरह, ये कहना कहीं से भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि जयराम महतो की JLKM ने झारखंड में BJP और AJSU की इस चुनाव में लंका लगा दी है.