बीजेपी के दिग्गजों के गृह नगर में पार्टी जीत को तरसी
रणनीति फेल, गुटबाजी हावी, बीजेपी की करारी हार
शैलेश शर्मा 9406308437नवभारत टाइम्स 24×7.in जिला ब्यूरो रायगढ़
घरघोड़ा!घरघोड़ा नगर पंचायत के उपाध्यक्ष चुनाव में बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है। 15 में से 9 पार्षदों के साथ मजबूत स्थिति में होने के बावजूद बीजेपी न सिर्फ उपाध्यक्ष पद गंवा बैठी, बल्कि उसकी अंदरूनी कलह भी खुलकर सामने आ गई।
कांग्रेस ने चतुर रणनीति अपनाते हुए 9 वोट हासिल किए, जबकि बीजेपी सिर्फ 7 पर सिमट गई। यह हार इसलिए और शर्मनाक हो गई क्योंकि घरघोड़ा वही जगह है जहां अपने आप को भाजपा के बड़े बड़े दिग्गज मानने वालों का गृह क्षेत्र है। बावजूद इसके, बीजेपी अपनी पार्टी को संभालने में नाकाम रही और कांग्रेस के अमित त्रिपाठी ने शानदार तरीके से उपाध्यक्ष पद पर कब्जा जमा लिया।
बीजेपी के ही पार्षद बने हार की वजह
बीजेपी को मिली इस करारी शिकस्त का सबसे बड़ा कारण उसके ही पार्षद बने। 9 पार्षद होने के बावजूद पार्टी अपने सभी वोट सुरक्षित नहीं रख पाई और 2 पार्षदों ने कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में वोट डाल दिया। इससे कांग्रेस की झोली में 9 वोट आ गए और बीजेपी को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा।
सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी के पार्षदों ने पार्टी से बगावत क्यों की? क्या बीजेपी का आंतरिक संकट इतना गहरा हो गया है कि उसके अपने पार्षद भी पार्टी के उम्मीदवार को जिताने में रुचि नहीं रखते? यह हार बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकती है।
बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस की सेंध
घरघोड़ा को बीजेपी का मजबूत गढ़ माना जाता था, लेकिन अब ऐसा लगता है कि पार्टी की पकड़ कमजोर पड़ गई है। नगर पंचायत अध्यक्ष चुनाव में हार के बाद उपाध्यक्ष पद पर भी शिकस्त ने यह साबित कर दिया कि बीजेपी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा।
दूसरी ओर, कांग्रेस के अमित ने अपनी रणनीति के जरिए यह दिखा दिया कि वह बीजेपी की कमजोरी का पूरा फायदा उठाने के लिए तैयार बैठी थी। कांग्रेस के सिर्फ 4 पार्षद होने के बावजूद, उसने निर्दलीयों और बीजेपी के असंतुष्ट पार्षदों को अपनी तरफ कर लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि बीजेपी अपने ही घर में बेइज्जत हो गई।

बीजेपी के लिए खतरे की घंटी!
घरघोड़ा में बीजेपी की इस हार ने पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। अगर यही हाल रहा तो आने वाले चुनावों में भी पार्टी को बड़े झटके लग सकते हैं। गुटबाजी, कमजोर संगठन और गलत रणनीति की वजह से बीजेपी अपने पार्षदों को एकजुट नहीं रख पाई, और कांग्रेस ने इसी कमजोरी पर वार करके जीत हासिल कर ली। अब देखना यह होगा कि बीजेपी इस हार से सबक लेती है या फिर यह अंदरूनी असंतुष्टि पार्टी की राजनीति को और ज्यादा गर्त में ले जाती है ।
