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शिक्षकों की सोच और आत्मविश्वास से बदलती है- कक्षा की छवि

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Deepak Mittal

शिक्षकों की सोच और आत्मविश्वास से बदलती है- कक्षा की छवि

कक्षा केवल चार दीवारों और ब्लैकबोर्ड का नाम नहीं है, यह वह जगह है जहाँ आने वाली पीढ़ी अपने भविष्य की नींव रखती है। इस नींव को मजबूत बनाने का सबसे बड़ा दायित्व शिक्षक पर होता है। लेकिन यह तभी संभव है जब शिक्षक स्वयं सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास से पूर्ण हों।

आज कि शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं रही बल्कि बच्चे अब सवाल पूछते हैं, तर्क करते हैं और नई खोज की ओर बढ़ते हैं। ऐसे में शिक्षक की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि शिक्षक का दृष्टिकोण नकारात्मक हो या वह आत्मविश्वास की कमी से जूझ रहा हो, तो बच्चे भी उस ऊर्जा को महसूस करते हैं। वहीं, जब शिक्षक उत्साह और आत्मविश्वास से भरा हो, तो उसकी ऊर्जा कक्षा का वातावरण बदल देती है। बच्चे भी सकारात्मक महसूस करते है

शोध बताते हैं कि शिक्षक का आत्मविश्वास सीधे तौर पर विद्यार्थियों की उपलब्धियों से जुड़ा होता है। आत्मविश्वासी शिक्षक कठिन से कठिन विषय को भी सरल बना सकता है। उसकी आवाज़, उसके हावभाव और उसकी शिक्षण शैली से बच्चे सीखने में रुचि पैदा करने लगते हैं। इसलिये कहा जाता है कि – “कक्षा वैसी ही होती है, जैसा उसका शिक्षक होता है।”

सोच भी उतनी ही अहम है। यदि शिक्षक का दृष्टिकोण हर बच्चे के प्रति सकारात्मक है, तो वह हर बच्चे में क्षमता देख पाता है। वह कमजोर छात्र को भी प्रोत्साहित करता है और होनहारों को नई उड़ान भरने का अवसर देता है। कक्षा का माहौल प्रतिस्पर्धा से नहीं, सहयोग और सीखने से भर जाता है। यही बदलती छवि है, जिसकी आज जरूरत है।

आज जब शिक्षा व्यवस्था नई चुनौतियों से गुजर रही है – डिजिटल प्लेटफॉर्म, नई शिक्षा नीति, और बच्चों का बदलता व्यवहार – तब शिक्षक की सोच और आत्मविश्वास सबसे बड़ी पूँजी बनकर सामने आते हैं। यह केवल बच्चों के लिए ही नहीं, बल्कि समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है। क्योंकि आत्मविश्वासी और सकारात्मक शिक्षक से निकले छात्र आगे चलकर आत्मनिर्भर और जिम्मेदार नागरिक बनते हैं।

इसलिए जरूरी है कि शिक्षकों को भी लगातार प्रशिक्षण और प्रोत्साहन मिले। उन्हें यह अहसास कराया जाए कि वे केवल विषय पढ़ाने वाले नहीं, बल्कि समाज गढ़ने वाले एक शिल्पकार हैं। जब शिक्षक अपनी भूमिका की अहमियत को समझते है, तो उसका आत्मविश्वास और भी मजबूत हो जाता है।

अतः कहा जा सकता है कि किताबें, पाठ्यक्रम और तकनीकें अपनी जगह जरूरी हैं, लेकिन कक्षा की असली पहचान शिक्षक कि भूमिका से होती है। उसकी सोच और आत्मविश्वास ही कक्षा की छवि बदलते हैं। इसलिए यदि हम शिक्षा की गुणवत्ता को ऊँचाई पर ले जाना चाहते हैं, तो सबसे पहले शिक्षक की सोच और आत्मबल को मज़बूत करना होगा।

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Author: Deepak Mittal

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