गुण्डरदेही (विशेष संवाददाता): प्रशासनिक सेवा में ईमानदारी, पारदर्शिता और निष्ठा का जीवंत उदाहरण पेश करते हुए, अनुविभागीय दंडाधिकारी (एसडीएम) प्रतिमा ठाकरे झा पर लगे झूठे आरोपों का आखिरकार सत्य की जीत के साथ अंत हो गया। गुण्डरदेही अधिवक्ता संघ द्वारा की गई जांच और तथ्यात्मक विश्लेषण के बाद यह स्पष्ट हो गया कि लगाए गए सभी आरोप पूरी तरह से निराधार थे। अधिवक्ता संघ ने औपचारिक पत्र जारी कर शिकायत को वापस लेते हुए, एसडीएम ठाकरे झा को पूर्ण रूप से निर्दोष घोषित किया है।

झूठ का पर्दाफाश, ईमानदारी की जीत:
दिनांक 6 फरवरी 2025 को एसडीएम प्रतिमा ठाकरे झा के विरुद्ध जमानत के बदले कथित धनराशि लिए जाने की शिकायत दर्ज की गई थी। इस शिकायत से प्रशासनिक हलकों में अस्थायी खलबली मच गई थी। लेकिन जब शिकायत की निष्पक्ष जांच की गई, तो यह स्पष्ट हुआ कि संबंधित आरोप पूर्व अधिकारी से जुड़े थे और एसडीएम ठाकरे झा का इससे कोई लेना-देना नहीं था।
अधिवक्ता संघ ने खुद माना – आरोप बेबुनियाद:
गुण्डरदेही अधिवक्ता संघ ने दुर्ग कमिश्नर को पत्र भेजकर स्पष्ट किया है कि प्रतिमा ठाकरे झा पूरी ईमानदारी, पारदर्शिता और विधिक मर्यादाओं के अनुसार कार्य कर रही हैं। संघ ने इस शिकायत को वापस लेते हुए आग्रह किया है कि इसे आधिकारिक रिकॉर्ड से हटाया जाए, जिससे उनकी प्रतिष्ठा पर कोई आंच न आए।
एक स्वार्थी तत्व की साजिश हुई बेनकाब:
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, यह पूरा विवाद एक विवादित एवं स्वार्थी अधिवक्ता की सुनियोजित साजिश थी, जिसने संघ के नाम का दुरुपयोग कर प्रशासनिक तंत्र को बदनाम करने की कोशिश की। लेकिन अधिवक्ता संघ ने समय रहते स्थिति को स्पष्ट कर, अपनी निष्पक्षता और सामाजिक जिम्मेदारी का परिचय दिया।
प्रतिमा ठाकरे झा की कार्यशैली को मिला जनसमर्थन:
मीडिया से बातचीत में एसडीएम ठाकरे झा ने कहा,
“मैं सदैव शासन के दिशा-निर्देशों और कानून की मर्यादा के तहत कार्य करती हूं। पारदर्शिता और जनसेवा ही मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता है।”
उनकी इस नीतिगत सोच और ईमानदार छवि की व्यापक सराहना हो रही है। स्थानीय नागरिकों से लेकर अधिवक्ता संघ तक, सभी ने उनके प्रशासनिक कौशल, संवेदनशीलता और निष्पक्षता की खुलकर प्रशंसा की है।
एक सकारात्मक और प्रेरणादायक संदेश:
यह घटनाक्रम केवल प्रतिमा ठाकरे झा की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की रक्षा नहीं करता, बल्कि एक बड़ा संदेश भी देता है –
“प्रशासन को झूठे आरोपों से डराने की साजिशें ज्यादा दिन टिक नहीं पातीं, जब सच और ईमानदारी एकजुट हों।”
संघ और प्रशासन द्वारा दिखाए गए संयम और विवेक ने यह साबित कर दिया कि संस्था की गरिमा और अधिकारी की साख से किसी को खिलवाड़ नहीं करने दिया जाएगा।
प्रतिमा ठाकरे झा जैसी अधिकारी न केवल शासन की रीढ़ हैं, बल्कि उन पर विश्वास करना समाज की सच्चाई और न्यायप्रियता में विश्वास करना है। यह मामला इस बात का प्रमाण है कि “सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित कभी नहीं होता,,00
