इब और मैनी नदी तटों पर रोज़ी-रोटी की तलाश में जुटे ग्रामीण**
जशपुर: आधुनिक दौर में जहां रोजगार के नए साधन तेजी से विकसित हो रहे हैं, वहीं जशपुर जिले के कई ग्रामीण आज भी सदियों पुरानी परंपरा को थामे अपनी आजीविका चला रहे हैं। इब और मैनी नदियों के किनारे एक बार फिर रेत से सोना निकालने की परंपरा जीवित हो उठी है।
सुबह होते ही ग्रामीण महिलाएं और पुरुष टोकनी, छलनी और अन्य पारंपरिक औजार लेकर नदी तट पर पहुंच जाते हैं। दिनभर की मेहनत के बाद रेत के महीन कणों में छिपा सोना खोजते हैं।
साढुकछार गांव की इतवारी बाई और दिनेश राम बताते हैं कि यह काम उनके पूर्वजों से विरासत में मिला है और आज भी उनके परिवारों की आमदनी का अहम स्रोत है। उनके अनुसार—
“इससे रोज़ की मजदूरी के बराबर आमदनी हो जाती है, और कई बार दो दिन की मजदूरी जितना सोना भी मिल जाता है।”
तामामुंडा, भालूमुंडा, लवाकेरा जैसे गांवों के अन्य ग्रामीणों का भी कहना है कि पहले की तुलना में अब रेत में सोने के कण कम हो गए हैं, लेकिन फिर भी यह परंपरा उनकी रोज़ी-रोटी का मुख्य आधार बनी हुई है। दिनभर की मेहनत के बाद मिले थोड़े-से सोने को स्थानीय बाजार में बेचकर परिवारों की जरूरतें पूरी की जाती हैं।
नदी किनारे रेत छानते ग्रामीणों का यह दृश्य न सिर्फ संघर्ष और उम्मीद की तस्वीर पेश करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि जशपुर की धरती आज भी अपने लोगों को परंपरा और सोने की चमक दोनों से जोड़े रखने की ताकत रखती है।
Author: Deepak Mittal









