
भारत अपनी स्वतंत्रता का अमृतकाल मना रहा है और प्रतिवर्ष 15 अगस्त को हम देशवासी स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। किसी भी देश के लिए आजादी की वर्षगांठ खुशी और गर्व का अवसर होता है।



हम भी 15 अगस्त 1947 को आजाद हुए थे। लेकिन, भारत को जो स्वतंत्रता मिली थी, उसके साथ-साथ सौगात में हमें विभाजन रूपी विभीषिका का दंश भी मिला था।

नए स्वतंत्र भारतीय राष्ट्र का जन्म विभाजन के हिंसक दर्द के साथ हुआ, जिसने लाखों भारतीयों पर पीड़ा के स्थायी निशान छोड़े।

यह बात कालापीपल विधायक घनश्याम चद्रवंशी पर विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में कहीं। उन्होंने कहा कि 1947 में विभाजन के कारण मानव जाति के इतिहास में सबसे विनाशकारी विस्थापनों में से एक देखा गया।

15 अगस्त 1947 की सुबह ट्रेनों, घोड़े खच्चर और पैदल ही लोग अपनी ही मातृभूमि से विस्थापित होकर अपने अपने देश जा रहे थे। इसी बीच बंटवारे के दौरान भड़के दंगे और हिंसा में लाखों लोगों की जान चली गई।

यह विचलित करनेवाली घटना थी, ऐसी भीषण त्रासदी थी, जिसमें करीब बीस लाख लोग मारे गए और डेढ़ करोड़ लोगों का पलायन हुआ था।

यह विभाजन मानव इतिहास में सबसे बड़े विस्थापनों में से एक है, जिससे लाखों परिवारों को अपने पैतृक गांवों एवं शहरों को छोड़ना पड़ा और शरणार्थी के रूप में एक नया जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा।

कार्यक्रम में विधायक चंद्रवंशी ने संबोधित करते हुए कहा कि पहली बार किसी सरकार ने विभाजन की विभीषिका को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय त्रासदी की मान्यता देने का निर्णय लिया तो वह थी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली भाजपा की सरकार।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 14 अगस्त 2021 को घोषणा की थी कि प्रतिवर्ष 14 अगस्त विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दिवस के आयोजनों का उद्देश्य विभाजन रूपी विभीषिका की क्रूरता में दिवंगत हुई आत्माओं को श्रद्धांजलि देने के साथ ही उन राजनीतिक शक्तियों एवं वैचारिक प्रेरणाओं के प्रति सजगता बनाए रखना भी होता है, जो समाज के लिए पुनः खतरा बन सकती हैं।

