दीपक मितल | प्रधान संपादक, छत्तीसगढ़
रायपुर। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा चलाए जा रहे युक्तियुक्तकरण अभियान ने जशपुर के सुदूर आदिवासी अंचलों में शिक्षा के प्रति नई आशा और जागरूकता की लहर पैदा की है। वर्षों से शिक्षकविहीन दो प्राथमिक विद्यालय—रैगारमुंडा और मुण्डाडीह—अब दो-दो नियमित शिक्षकों की नियुक्ति के साथ फिर से जीवंत हो उठे हैं। यह बदलाव मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के मार्गदर्शन में की गई रणनीतिक योजना का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
शिक्षक आए, शिक्षा लौटी, भरोसा बढ़ा
फरसाबहार विकासखंड के ये दोनों गांव पहले ऐसे स्कूलों से जूझ रहे थे, जो केवल नाम के लिए चल रहे थे। शिक्षक न होने से बच्चे स्कूल नहीं आते थे और पालक भी शिक्षा से विमुख हो चले थे। लेकिन अब जब युक्तियुक्तकरण के तहत योग्य शिक्षकों की तैनाती हुई है, गांव में एक शैक्षणिक पुनर्जागरण देखा जा रहा है।
रैगारमुंडा शाला, जो स्वयं मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र कुनकुरी में आती है, में शिक्षक नियुक्ति के बाद से बच्चों की उपस्थिति बढ़ गई है। मुण्डाडीह के निवासी भी अब आश्वस्त हैं कि उनके बच्चों का भविष्य उज्जवल होगा।
गांव वालों का भावनात्मक जुड़ाव
गांव की शांति चौहान, जिनकी बेटी कक्षा पाँचवीं में पढ़ती है, बताती हैं:
“अब हम निश्चिंत हैं कि हमारे बच्चे भी पढ़-लिखकर कुछ बन पाएंगे। शिक्षक आ गए हैं, ये हमारे लिए बहुत बड़ा तोहफा है।”
शाला प्रबंधन समिति ने शिक्षकों का आत्मीय स्वागत किया और शासन को धन्यवाद ज्ञापित किया।
मुख्यमंत्री ने बताया इसे बच्चों के भविष्य में निवेश
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस अवसर पर कहा:
“यह केवल प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि हमारे बच्चों के भविष्य को संवारने की दिशा में एक ठोस प्रयास है। हमने यह सुनिश्चित किया कि हर जरूरतमंद स्कूल में शिक्षक उपलब्ध हों, विशेषकर सुदूर अंचलों में।”
उन्होंने आगे कहा कि सरकार का प्रयास है कि अगले शैक्षणिक सत्र तक प्रदेश के हर प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय में आवश्यक संख्या में शिक्षक हों, जिससे “शिक्षा की लौ कहीं भी मंद न हो”।
सकारात्मक लहर का असर
-
शिक्षकों की मौजूदगी से बच्चों को अब मिलेगा नियमित मार्गदर्शन।
-
शैक्षणिक गतिविधियां पुनः चालू होंगी।
-
समाज में सरकार के प्रति विश्वास और सहभागिता भी मजबूत हुई है।
सब पढ़ें, सब बढ़ें
युक्तियुक्तकरण की यह पहल छत्तीसगढ़ सरकार की दूरदर्शी सोच और शिक्षा के प्रति संकल्प को दर्शाती है। रैगारमुंडा और मुण्डाडीह जैसे गांव अब शिक्षा की रोशनी में चमकने लगे हैं। यह बदलाव सिर्फ कागज़ों पर नहीं, गांव की जमीनी हकीकत में नजर आता है।
