नई दिल्ली – असम पुलिस पर 171 कथित फर्जी एनकाउंटर के गंभीर आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा आदेश जारी किया है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले को “अत्यंत गंभीर” मानते हुए स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के निर्देश दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“यदि यह आरोप सही साबित होते हैं, तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 — जीवन के अधिकार — का गंभीर उल्लंघन माना जाएगा।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि हर एक मामले को स्वतंत्र रूप से जांचना आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई निर्दोष व्यक्ति पुलिस कार्रवाई में मारा न गया हो। साथ ही, जिन मामलों में पुलिस कार्रवाई सही पाई जाए, उन्हें भी स्पष्ट किया जाए।
असम मानवाधिकार आयोग को नोटिस जारी करने का निर्देश
अदालत ने असम मानवाधिकार आयोग (AHRC) को निर्देश दिया है कि वह पीड़ित परिवारों से संपर्क के लिए सार्वजनिक नोटिस जारी करे, ताकि सभी पक्षों की सुनवाई हो सके और किसी भी तरह की पक्षपातपूर्ण जांच से बचा जा सके।
क्या है मामला?
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आरोप है कि साल 2021 से 2022 के बीच असम पुलिस ने 171 फर्जी एनकाउंटर किए।
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इन घटनाओं को लेकर मानवाधिकार संगठनों और याचिकाकर्ताओं ने गंभीर सवाल उठाए हैं।
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कई मामलों में दावा किया गया कि बिना उचित प्रक्रिया के लोगों को मुठभेड़ में मार गिराया गया।
असम सरकार का पक्ष
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असम सरकार ने इन आरोपों को “सुरक्षा बलों का मनोबल तोड़ने की साजिश” बताया है।
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सरकार का कहना है कि सभी कार्रवाइयां 2014 में जारी केंद्र सरकार की गाइडलाइन्स के मुताबिक की गई हैं।
अब आगे क्या?
अब असम मानवाधिकार आयोग को अदालत के आदेशानुसार जांच प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना होगा और प्रत्येक मामले की समीक्षा करनी होगी। इस फैसले को पुलिस जवाबदेही और मानवाधिकार सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
