दल्लीराजहरा : कभी खनन नगरी के नाम से प्रसिद्ध दल्लीराजहरा आज प्रदूषण के दलदल में डूब चुका है। शहर की आबादी घटने के बावजूद हवा में जहर की मात्रा लगातार बढ़ रही है। दर्जन भर वार्ड, जिनमें पुराना बाजार, शहीद वीर नारायण सिंह चौक, माइन्स ऑफिस चौक, न्यू मार्केट और बस स्टैंड शामिल हैं, दिन-रात लाल धूल के बवंडर में घुट रहे हैं।
दल्लीराजहरा माइंस से उठने वाली लाल मिट्टी, फैक्ट्रियों का जहरीला धुआं, और सड़कों पर उखड़ी हुई डामर की परत ने मिलकर शहर को गैस चेंबर बना दिया है। ड्रेन-टू-ड्रेन सड़क न होने से धूल का गुबार 24 घंटे हवा में उड़ता रहता है। आटा मिल, साबुन फैक्ट्री और मिक्सचर प्लांट से निकलने वाला धुआं और वाहनों से निकलने वाली काली गैस ने वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) को दोपहर बाद 300 के करीब पहुंचा दिया है जो कि सबसे खतरनाक श्रेणी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि 0-50 तक का AQI स्वास्थ्य के लिए सही है, लेकिन दल्लीराजहरा में यह मानक चार गुना तक पार कर जाता है। प्रोफेसर आकाश साहू और प्रोफेसर नवनीत राव के मुताबिक, सुबह से शाम तक वाहनों की आवाजाही और धूल का गुबार वायु प्रदूषण को दिनभर ऊपर चढ़ाता है।
शहीद अस्पताल के डॉक्टर शैबाल जाना चेतावनी देते हैं “यह प्रदूषण फेफड़ों और त्वचा की बीमारियों को जन्म दे रहा है। समय रहते इलाज न मिलने पर दमा, हृदयरोग और कैंसर तक का खतरा है।
हालत इतनी गंभीर है कि लोग सांस लेने से डर रहे हैं। आंखों में जलन, त्वचा में संक्रमण और बच्चों में खांसी-बुखार आम हो चुके हैं। शहर के लोग मास्क, दस्ताने, स्कार्फ और चश्मा पहनकर घर से निकलने को मजबूर हैं।
फिर भी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला प्रशासन खामोश है। ऐसा लगता है जैसे वे शहर की हवा नहीं, अपने कमरों के एसी में बैठकर “साफ” हवा में सांस ले रहे हों।
अगर यही हाल रहा तो दल्लीराजहरा की पहचान खनन से नहीं, बल्कि “मौत की हवा” से होगी!

Author: Deepak Mittal
