उत्तरकाशी के धरालीगांव में खीर गंगा का प्रचंड रूप देखकर लोगों को 6 अगस्त 1948 की आपदा याद आ गई। 47 साल पूर्व आई आपदा की बरसी से ठीक एक दिन पूर्व धराली आपदा ने सब को झकजोर कर रख दिया है।
वर्षों पूर्व आपदा ने लोगों को जो जख्म दिए थे वह आज फिर हरे हो गए। बुजुर्गों का कहना है कि 1948 में धराली से कुछ किलोमीटर नीचे कनोडिया गाड ने भी भयंकर रूप दिखाया था। उस समय डबराणी में मां गंगा का प्रभाव तक रुक गया था, जिससे फिर भारी तबाही हुई थी।
धराली में खीर गंगा में यह पहली बार नहीं हुआ कि उसका जलस्तर बढ़ने के कारण आसपास के क्षेत्र को नुकसान हुआ है। हालांकि इससे पूर्व की आपदाओं मैं वहां पर जान का नुकसान नहीं हुआ, लेकिन उसके बाद भी वहां पर ना ही स्थानीय लोग चेते और ना ही शासन प्रशासन की ओर से वहां पर सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम किए गए।
वर्ष 2023 में खीर गंगा के बढ़ते जलस्तर के कारण वहां पर कई दिनों तक गंगोत्री हाईवे भी बंद रहा था। साथ ही दुकानों और होटल को भी नुकसान हुआ था। उसके बाद वहां पर सुरक्षात्मक कार्य तो हुए लेकिन उसके बावजूद नदी का स्पान कम होने के कारण वह विनाशकारी आपदाओं को नहीं रोक पाया। वहीं इससे पूर्व भी वर्ष 2017-18 में खीर गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण वहां पर होटल दुकानों और कई घरों में मलबा घुस गया था। उस समय भी आपदा से उभरने में लोगों को करीब एक वर्ष का समय लग गया था हालांकि उस समय जिंदगी को नुकसान नहीं हुआ था।
