बिलासपुर कोरबा करतला जनपद में DMF फंड पर 5% कमीशन मांगने का विवाद थमा, लेकिन उठे कई सवाल अनुत्तरित

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जे के मिश्र
जिला ब्यूरो चीफ
नवभारत टाइम्स 24*7in बिलासपुर

बिलासपुर कोरबा। जनपद पंचायत करतला में जिला खनिज न्यास निधि (DMF) के अंतर्गत स्वीकृत कार्यों में 5 प्रतिशत कमीशन की मांग को लेकर मचा बवाल अब शांत होता नजर आ रहा है, लेकिन इस प्रकरण से जुड़ी कई बातें अब भी सुलझी नहीं हैं। जनपद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी वैभव कौशिक पर सरपंचों द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों के बाद प्रशासनिक हलकों में हलचल तेज हो गई थी। हालांकि अब जनपद उपाध्यक्ष और सीईओ दोनों ही मामले को समाप्त मान रहे हैं, लेकिन घटनाक्रम के तेजी से पलटने ने पूरे मामले को और अधिक रहस्यमय बना दिया है।

करीब एक सप्ताह पहले 35 ग्राम पंचायतों के सरपंचों ने जनपद कार्यालय पहुंचकर ज्ञापन सौंपा था, जिसमें आरोप लगाया गया कि सीईओ द्वारा DMF फंड से जुड़ी योजनाओं की पहली किस्त जारी करने के बदले 5 प्रतिशत अग्रिम कमीशन की मांग की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा था कि इस तरह की वसूली से निर्माण कार्यों की गुणवत्ता प्रभावित होगी।

जनपद उपाध्यक्ष मनोज झा ने पहले इस आरोप की पुष्टि करते हुए कहा था कि यदि ऐसे भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगी, तो यह मुद्दा उच्च स्तर पर उठाया जाएगा। उन्होंने 15% तक अवैध वसूली की आशंका भी जताई थी। वहीं दूसरी ओर, अब वे इस मामले को “गलतफहमी” मानते हुए इसका पटाक्षेप होने की बात कह रहे हैं। उन्होंने बताया कि शायद सचिवों ने सरपंचों को अधूरी जानकारी दी, जिससे भ्रम की स्थिति बनी।

सीईओ वैभव कौशिक ने सभी आरोपों को सिरे से नकारते हुए कहा कि उनका या जनपद का इस मामले में कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कार्यों की राशि चेक के माध्यम से नियमित रूप से जारी की गई है और आंगनबाड़ी भवन निर्माण से जुड़ी सारी स्वीकृतियां पहले ही पूरी हो चुकी थीं।

हालांकि, इतने बड़े आरोप के तुरंत बाद इतने सहज ढंग से मामले का निपट जाना खुद में सवाल पैदा करता है। क्या सरपंचों ने दबाव में शिकायत की थी? या शिकायत के बाद उन्हें किसी दबाव के चलते पीछे हटना पड़ा? क्या कोई अंदरूनी कर्मचारी इस वसूली में लिप्त था, और सीईओ को केवल मोहरा बनाया गया?

इसके अलावा यह भी सवाल उठ रहा है कि कार्यालय में पहले से संलग्न एक लिपिक, जिसकी नियुक्ति समाप्त हो चुकी थी, उसे किसके प्रभाव से अब तक वहां रखा गया है? और क्या जिला प्रशासन की कोई स्वतंत्र जांच इस पूरे मामले पर हुई भी थी, या बिना किसी आधिकारिक निष्कर्ष के ही इसे समाप्त मान लिया गया?

वर्जन – मनोज झा, उपाध्यक्ष, जनपद पंचायत करतला, कोरबा (छग)
“यह मामला पिछले सप्ताह का है और अब समाप्त हो चुका है। सरपंचों को जो जानकारी मिली थी वह शायद अपुष्ट थी, जिसे लेकर उन्होंने अपनी बात रखी। अब स्थिति स्पष्ट है और कोई विवाद नहीं है।”

वर्जन – वैभव कौशिक, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जनपद पंचायत करतला
“इस खबर में कोई सच्चाई नहीं है। न मेरा, न जनपद का कोई लेना-देना है। मैंने कई बार सफाई दी है कि इस पूरे मामले में कोई अनियमितता नहीं हुई। मैं केवल तीन महीने पहले पदस्थ हुआ हूं और सभी कार्यों की चेक प्रक्रिया समय पर पूरी की गई है।”

नवभारत टाइम्स 24*7in का निष्कर्ष
यह मामला प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल खड़ा करता है। यदि शिकायतें गलत थीं, तो उन पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? और अगर सही थीं, तो इतनी जल्दी मामला ठंडे बस्ते में कैसे डाल दिया गया? जवाबदेही तय किए बिना इस प्रकार के मामलों का शांत हो जाना, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को कमजोर करता है।

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Author: Deepak Mittal

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