इक बेवफा: दिल की जुबां से निकले अल्फ़ाज़
गोरखपुर। प्रेम जब दिल में उतरता है, तो हर दूरी छोटी और हर भावना बड़ी लगने लगती है। लेकिन जब वही प्रेम बेवफाई की चादर ओढ़ ले, तो दिल की पीड़ा शब्द बनकर बाहर आ जाती है।
डॉ. सरिता चौहान, प्रवक्ता हिंदी, पीएम श्री ए.डी. राजकीय कन्या इंटर कॉलेज, गोरखपुर, ने अपनी स्वरचित कविता “इक बेवफा” में ठीक उसी भावना को शब्दों में ढाला है — जहां दिल धोखा खाकर भी हार मानने को तैयार नहीं, और जुबां पर बार-बार वही नाम आ जाता है जिसे भुलाना चाहती हैं।
दूर होते ही दूरियां बढ़ाते हैं लोग। क्या कहना हो ऐसे लोगों का।
कुछ अपनों का कुछ बेगानों का।
दिल तो दिल ही है हुजूर जोकि मजता नहीं।
यह दूरी और नजदीकी कुछ जानता नही।
वह तो अपने मन की करता है।
दिल की बात जब जुबां पर आती है तो उसे दबाना बहुत ही मुश्किल होता है।
पर क्या करोगे, यार की बेवफाई को बताना बड़ा मुश्किल होता है।
उरते किक नहीं होती मेरी, और उसका जिक्र किये बिना मैं रह नहीं सकती।
चंद लम्हों की बात हो या चाँद सितारों तक की दूरी मैं कुछ भी सह नहीं सकती। तुझसे दूर होकर मैं रह नहीं सकती
