बालोद से छत्तीसगढ़ तक हरियाली की अलख
‘हरी चादर’ बिछाने वाले अधिकारी को मिला ‘पर्यावरण रत्न’ सम्मान
राजनांदगांव की हरियाली में चंद्रकांत कौशिक का अद्वितीय योगदान
बालोद,,प्राकृतिक धरोहर को सहेजने, सड़कों से लेकर मोहल्लों तक हरियाली की चादर बिछाने और लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता जगाने वाले छत्तीसगढ़ के प्रशासनिक अधिकारी चंद्रकांत कौशिक को ‘पर्यावरण रत्न’ सम्मान से अलंकृत किया गया है।
यह प्रतिष्ठित सम्मान श्री बागेश्वर मंदिर धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा सावन के पहले सोमवार को हरित कांवड़ यात्रा के अवसर पर आयोजित विशेष वृक्षारोपण समारोह में प्रदान किया गया। समारोह में राजनांदगांव के महापौर मधुसूदन यादव मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे, जिन्होंने कौशिक को इस सम्मान से विभूषित किया।
चंद्रकांत कौशिक, जो वर्तमान में बालोद जिले में अपर कलेक्टर के पद पर पदस्थ हैं, ने अपने पूर्ववर्ती कार्यकाल में राजनांदगांव को ‘हरित नगरी’ बनाने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किए। उनके नेतृत्व में हजारों पौधे लगाए गए, ग्रीन बेल्ट का विस्तार किया गया और आम जनता को वृक्षारोपण के लिए प्रेरित किया गया।
श्री बागेश्वर ट्रस्ट, जो भगवान भोलेनाथ की प्रेरणा से हर वर्ष सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय गतिविधियों का संचालन करता है, ने इस बार जलार्पण के उपरांत अपने परिसर में वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें बड़ी संख्या में शिवभक्तों, छात्र-छात्राओं और पर्यावरण प्रेमियों ने भाग लिया।
पर्यावरण संरक्षण से जुड़े ट्रस्ट पदाधिकारियों ने बताया कि —
“चंद्रकांत कौशिक की हरियाली अभियान की बदौलत राजनांदगांव में बीते वर्षों में जो हरित क्रांति आई, उसने पर्यावरण के प्रति जनभागीदारी का नया अध्याय रचा। ट्रस्ट उन्हें सम्मानित कर गौरवान्वित हुआ है।”
सम्मानित होने के बाद राजनांदगांव से बालोद वापस पहुंचने पर बालोद प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने भी चंद्रकांत कौशिक का पुष्पगुच्छ और स्मृति चिन्ह भेंट कर भव्य स्वागत किया। उन्होंने उनके उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि, “ऐसे संवेदनशील और जागरूक अधिकारियों का सम्मान, समाज में सकारात्मक सोच और प्रेरणा का संचार करता है।”
छत्तीसगढ़ जैसे तेजी से शहरीकरण की ओर बढ़ते प्रदेश में चंद्रकांत कौशिक जैसे प्रशासनिक अधिकारियों की हरित सोच आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है। ‘पर्यावरण रत्न’ सम्मान उनके द्वारा शुरू किए गए ‘हरियाली आंदोलन’ की मान्यता है, जो अब छत्तीसगढ़ भर में उदाहरण बनता जा रहा है।
