दीपक मितल प्रधान संपादक छत्तीसगढ़
बालोद,छत्तीसगढ़ की माटी से जुड़ी अद्भुत प्रतिभा, प्रसिद्ध हास्य कवि डॉ. सुरेंद्र दुबे का बालोद से एक गहरा और आत्मीय संबंध रहा है। विगत वर्षों में वे छह से सात बार बालोद की धरती पर पधार चुके हैं और हर बार उन्होंने अपनी ओजपूर्ण, व्यंग्यात्मक व हास्य से भरपूर कविताओं से जनमानस को गुदगुदाते हुए सोचने पर मजबूर किया है।
डॉ. दुबे प्रथम बार 31 जनवरी 2010 को बालोद आए थे, जब जेसीआई बालोद द्वारा आयोजित “माटी के पुत्र सम्मान” कार्यक्रम में उन्हें आमंत्रित किया गया था। इस कार्यक्रम में बालोद की जनता ने ऐतिहासिक रूप से भाग लिया था। हजारों की संख्या में मौजूद श्रोताओं ने उनके काव्यपाठ पर करतल ध्वनि से स्वागत किया था। उनकी चिर-परिचित शैली, जिसमें व्यंग्य, संवेदना और हास्य का अद्भुत संगम होता है, ने हर दिल पर गहरी छाप छोड़ी थी।

जेसीआई के पूर्व अध्यक्ष मोहनभाई पटेल ने बताया कि “वह कार्यक्रम बालोद ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ के साहित्यिक परिदृश्य में एक ऐतिहासिक क्षण था। डॉ. सुरेंद्र दुबे ने बालोदवासियों के दिलों में स्थाई स्थान बना लिया।”
हाल ही में आईएमए अध्यक्ष एवं समाजसेवी डॉ. प्रदीप जैन ने रायपुर में डॉ. सुरेंद्र दुबे से मुलाकात की और उन्हें पुनः बालोद आने का आमंत्रण भी दिया। डॉ. जैन ने कहा कि “डॉ. दुबे की कविताएं जहां गुदगुदाती हैं, वहीं समाज को आइना भी दिखाती हैं। उनके शब्दों में व्यंग्य की धार के साथ-साथ संवेदना की गहराई भी होती है।”

डॉ. सुरेंद्र दुबे: हास्य के साथ संवेदना के सजग प्रहरी
डॉ. सुरेंद्र दुबे केवल कवि नहीं, बल्कि एक सशक्त विचारक भी हैं। उन्होंने देशभर में मंचों पर अपनी पहचान बनाई है। वे ‘कविता के माध्यम से सामाजिक चेतना’ को जनमानस तक पहुंचाने वाले कवियों में गिने जाते हैं। उन्हें पद्मश्री, हास्य सम्राट सम्मान, सहित अनेक राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार मिल चुके हैं।
उनकी रचनाएं राजनीति, समाज, व्यवस्था और जीवन की विसंगतियों पर करारा प्रहार करती हैं, परंतु शालीनता और सहज हास्य की परिधि में रहकर। यही वजह है कि वे बच्चों, युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों – सभी के प्रिय कवि हैं।
बालोद की धरती को भी गर्व है कि उसने इतने बड़े साहित्यकार और कलाकार की उपस्थिति को कई बार महसूस किया है। जनता आज भी उनकी अगली प्रस्तुति की बाट जोह रही है, उच्च जानकारी प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रदीप चोपड़ा ने दिया,00
