पीएचडी करने पर नहीं मिला वेतनवृद्धि का लाभ, रिटायर्ड अधिकारी ने जीता मुकदमा

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बिलासपुर। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने एक रिटायर्ड सरकारी अधिकारी की अपील पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए राज्य सरकार को वर्ष 1993 से दो अग्रिम वेतनवृद्धि का लाभ देने का आदेश दिया है। साथ ही बकाया राशि पर 6 प्रतिशत ब्याज भी अदा करने के निर्देश दिए गए हैं।

यह आदेश चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की खंडपीठ ने सुनाया। इससे पहले सिंगल बेंच ने उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि पीएचडी की पढ़ाई की अनुमति सक्षम प्राधिकारी से नहीं ली गई थी।

बिलासपुर निवासी नीलकमल गर्ग की नियुक्ति 14 फरवरी 1983 को तत्कालीन मध्यप्रदेश के सरगुजा जिले के बैकुंठपुर में ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी के पद पर हुई थी। सेवा के दौरान उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए अनुमति लेकर पीएचडी करने का निर्णय लिया और नवंबर 1993 में हिंदी विषय में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।

उन्होंने वर्ष 1995 में शासन से अनुरोध किया कि नियमों के अनुसार पीएचडी करने पर उन्हें दो अग्रिम वेतनवृद्धि का लाभ दिया जाए। लेकिन विभाग ने उनका आवेदन खारिज कर दिया। कई बार आग्रह करने के बावजूद कोई निर्णय नहीं हुआ। इसके बाद गर्ग ने 2017 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

खंडपीठ ने अपील स्वीकार करते हुए कहा कि पीएचडी करने वाले शासकीय कर्मचारी को नियमों के तहत वेतनवृद्धि का लाभ मिलना चाहिए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि गर्ग को यह लाभ नवंबर 1993 से दिया जाए और बकाया राशि का भुगतान दो माह के भीतर 6 प्रतिशत ब्याज सहित किया जाए।

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया कि राज्य सरकार पहले भी कई मामलों में पीएचडी करने वाले कर्मचारियों को वेतनवृद्धि का लाभ दे चुकी है। यह सिद्धांत स्थापित हो चुका है कि सेवा के दौरान पीएचडी की डिग्री हासिल करने पर दो वेतनवृद्धि का लाभ दिया जाएगा।

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