मदकू द्वीप : अष्टभुजी गणेश और माण्डूक्य ऋषि की तपोभूमि में अष्टभुजी नृत्य गणेश की कलचुरी कालीन प्रतिमा

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Deepak Mittal

निर्मल अग्रवाल ब्यूरो प्रमुख मुंगेली 8959931111

सरगांव-मदकू द्वीप क्षेत्र में प्राप्त अष्टभुजी नृत्य गणेश की विलक्षण दक्षिणावर्त प्रतिमा इस अंचल को प्राचीन शैव–साधना केंद्र मानने की अवधारणा को पुष्ट करती है। स्थापत्य की दृष्टि से यह प्रतिमा 10वीं–11वीं शताब्दी की कलचुरी कला का अनुपम उदाहरण है। मूर्तिकला विज्ञान की दृष्टि से यह प्रतिमा छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास में एक मील का पत्थर कही जा सकती है।

शिल्प–लक्षण

प्रतिमा लाल बलुआ पत्थर पर निर्मित है।
भगवान गणेश को अष्टभुज रूप में नृत्यमग्न दर्शाया गया है। हाथों में पाश, अंकुश, मोदक पात्र, त्रिशूल, परशु, वरद मुद्रा आदि का अंकन है।
गजमुख पर अलंकरण, मस्तक पर जटाजूट और करुणामयी दृष्टि अंकित है।
दक्षिणावर्त सूँड़, शक्ति–साधना के गूढ़ रहस्य को प्रकट करती है। अंग–प्रत्यंग में लयात्मकता, नृत्य की गाम्भीर्य मुद्रा और शिल्प–सौंदर्य कला की उच्च परंपरा का परिचायक है।

यह प्रतिमा यह संकेत देती है कि मदकू द्वीप केवल एक उपासना–स्थल ही नहीं, अपितु कला, स्थापत्य और आध्यात्मिक साधना का संगम स्थल रहा है। लगभग 60–70 वर्ष पूर्व यह प्रतिमा स्थानीय लोगों को प्राप्त हुई थी जिसे एक छोटी मढ़िया में स्थापित कर पूजा अर्चना की जा रही थी।
श्री हरिहर क्षेत्र केदार द्वीप सेवा समिति मदकू के द्वारा लाल बलुआ पत्थर से मंदिर का निर्माण किया गया और महाशिवरात्रि सन् 2021 को नव–निर्मित मंदिर में प्राण–प्रतिष्ठा कर प्राचीन अष्टभुजी गणेश प्रतिमा की स्थापना की गई।

मण्डूक्य ऋषि की तपःस्थली

मदकू का वर्तमान नाम वास्तव में “माण्डूक्य” शब्द का अपभ्रंश है। शिवनाथ नदी की धाराओं से घिरा यह पावन द्वीप अपने नैसर्गिक सौंदर्य और शांति के कारण माण्डूक्य ऋषि को अत्यंत प्रिय रहा। यहाँ उन्होंने दीर्घकालीन तप किया और माण्डूक्य उपनिषद् की रचना की, जो वेदांत दर्शन का सार मानी जाती है।

माण्डूक्य उपनिषद् के श्लोक

इस उपनिषद् में “ॐ” को ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड का स्वरूप बताया गया है।

“ॐ इत्येतदक्षरमिदं सर्वम्”
– अर्थात् ॐ ही सम्पूर्ण जगत् का प्रतिरूप है।

उपनिषद् में चेतना की चार अवस्थाओं का उल्लेख है –

  1. जाग्रत (वैश्वानर) – स्थूल अनुभव।
  2. स्वप्न (तैजस) – सूक्ष्म अनुभव।
  3. सुषुप्ति (प्राज्ञ) – अविद्या में लीन गहन निद्रा।
  4. तुरीय – जो इन तीनों से परे है; वही ब्रह्म का अनुभव है।

इस प्रकार, माण्डूक्य उपनिषद् मदकू द्वीप को केवल धार्मिक नहीं, दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अद्वितीय स्थान प्रदान करता है।

गणेश प्रतिमा की सूँड़ : दिशा और निहितार्थ

भगवान गणेश को वक्रतुण्ड कहा जाता है। उनकी सूँड़ के तीन स्वरूप हैं –

  1. बाईं ओर मुड़ी सूँड़ (चंद्र प्रभाव / इड़ा नाड़ी)- शांति, समृद्धि, शिक्षा, धन और परिवार–सुख की दात्री। मुख्य द्वार पर स्थापना करने से नकारात्मक शक्तियों को रोकती है।
  2. दाईं ओर मुड़ी सूँड़ (सूर्य प्रभाव / पिंगला नाड़ी)- शक्ति, पराक्रम, विजय और शत्रु–नाश का प्रतीक।
    यह स्वरूप सिद्धिविनायक कहलाता है। विशेष कार्यों की सफलता हेतु अत्यंत प्रभावकारी।
  3. सीधी सूँड़ (सुषुम्ना / मोक्षमार्ग)- अत्यंत दुर्लभ स्वरूप।
    कुण्डलिनी जागरण, समाधि, रिद्धि–सिद्धि और मोक्ष का साधन।
    संत–समाज द्वारा पूजनीय।

शास्त्रों के अनुसार सूंड़ की दिशा के अनुरूप पूजन का महत्व–

बाईं सूँड़ : गृहस्थ जीवन की समृद्धि व स्थायी सुख।

दाईं सूँड़ : विजय और त्वरित सिद्धि।

सीधी सूँड़ : आध्यात्मिक उत्कर्ष और मोक्ष।

मदकू द्वीप की अष्टभुजी नृत्य गणेश प्रतिमा, कलचुरी कला का अद्वितीय उदाहरण है। यहाँ मण्डूक्य ऋषि की तपस्या और माण्डूक्य उपनिषद् की रचना ने इसे आध्यात्मिक महत्ता प्रदान की। गणेश प्रतिमा की सूँड़ के भेद जीवन के विविध आयामों – गृहस्थ सुख, कार्य–सिद्धि और मोक्षमार्ग – का प्रतीक हैं।

साभार विशेष संकलनकर्ता

भगवती प्रसाद मिश्र
सरगांव मुंगेली

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Author: Deepak Mittal

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