रतलाम से इमरान खान की रिपोर्ट
रतलाम जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाल स्थिति के चलते ग्रामीण और गरीब वर्ग अब भी कथित झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे इलाज कराने को मजबूर हैं। शासन द्वारा सरकारी अस्पतालों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाने और चिकित्सकों एवं स्टाफ को प्रतिमाह लाखों की तनख्वाह देने के बावजूद प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं ज़मीनी स्तर पर विफल साबित हो रही हैं।
हाल ही में सरवन क्षेत्र में कथित झोलाछाप डॉक्टर के इलाज से एक बच्चे की मृत्यु के बाद पूरे जिले में प्रशासन सक्रिय हुआ है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से इन फर्जी चिकित्सकों के खिलाफ कार्यवाही शुरू की गई है, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो यह कार्रवाई सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि सरकारी अस्पतालों में समय पर चिकित्सक मिलें, जरूरी दवाइयां उपलब्ध हों और इलाज में देरी न हो, तो कोई भी व्यक्ति फर्जी डॉक्टरों के पास जाने को मजबूर नहीं होगा। वर्तमान स्थिति यह है कि कई सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर समय पर नहीं मिलते, स्टाफ की भारी कमी है, और दवाओं का अभाव बना रहता है।
इन परिस्थितियों का फायदा उठाकर कथित झोलाछाप डॉक्टर खुलेआम गलियों, मोहल्लों, गांवों और चौक-चौराहों तक में अपनी दुकानें चला रहे हैं। जानकारी के अनुसार, केवल सरवन क्षेत्र में ही करीब 22 कथित झोलाछाप चिकित्सक सक्रिय हैं। ये लोग मामूली बुखार, सर्दी-खांसी में भी ड्रिप चढ़ाकर 300 से 600 रुपये तक वसूलते हैं।
गंभीर बात यह है कि जब प्रशासन इनके खिलाफ कार्रवाई करता है, तो कुछ जनप्रतिनिधि कथित तौर पर इनके पक्ष में खड़े हो जाते हैं, जिससे कार्रवाई प्रभावित होती है। साथ ही, कई जगहों पर बिना योग्य तकनीशियन के लैब संचालित की जा रही हैं, जहां बिना मान्यता के खून और पेशाब की जांच कर मोटी कमाई की जा रही है।
आलोट नगरीय व ग्रामीण क्षेत्र में इन झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। सूत्रों का मानना है कि स्वास्थ्य विभाग के कुछ कर्मचारियों और अधिकारियों की कथित मिलीभगत के चलते इन पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पा रहा है।
इस संबंध में आलोट एसडीएम सुनील कुमार जायसवाल ने जानकारी दी कि उन्होंने बीएमओ को निर्देशित किया है कि फर्जी चिकित्सकों के खिलाफ सख्त और निरंतर कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।

Author: Deepak Mittal
