बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि कोई भी बालिग महिला अपने जीवनसाथी के साथ स्वतंत्र रूप से रहने के लिए स्वतंत्र है। कोर्ट ने एक पिता द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) याचिका को खारिज करते हुए कहा कि बालिग बेटी अपने जीवन के फैसले खुद ले सकती है।
🔹 क्या था मामला?
बिलासपुर के भारतीय नगर निवासी एक व्यक्ति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने दावा किया कि 18 मई 2025 को उनकी 25 वर्षीय बेटी मॉल में फिल्म देखने गई थी, लेकिन वापस नहीं लौटी। उन्हें संदेह था कि उनकी बेटी को मोहम्मद अज़हर नामक युवक और उसके साथियों ने जबरन बंधक बना लिया है। उन्होंने थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट भी दर्ज करवाई थी।
🔹 बेटी ने क्या कहा कोर्ट में?
बेटी को 24 मई को एसडीएम कोर्ट में पेश किया गया, जहां उसने स्पष्ट रूप से कहा:
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उसने अपनी मर्जी से मोहम्मद अज़हर से विवाह किया है।
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वह किसी भी दबाव के बिना अपने पति के साथ रह रही है।
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उसने शादी का प्रमाण पत्र भी न्यायालय में प्रस्तुत किया।
🔹 हाईकोर्ट की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा:
“युवती बालिग है और उसने स्वतंत्र रूप से निर्णय लिया है। वह बिना किसी दबाव के पति के साथ रह रही है। ऐसी स्थिति में उसे जबरन कोर्ट में बुलाने या किसी पर शक करने की आवश्यकता नहीं है।”
🔹 याचिका खारिज
कोर्ट ने पिता की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि:
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बालिग बेटी का इकबालिया बयान ही पर्याप्त है।
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वह अपने जीवन के निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।
