अमित जोगी का राज्य शासन को अल्टीमेटम: अजीत जोगी की मूर्ति स्थापना को लेकर चेताया, कहा- “विस्फोटक स्थिति के लिए शासन जिम्मेदार होगा”

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रायपुर। छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के नेता अमित जोगी ने अपने पिता स्वर्गीय अजीत जोगी की मूर्ति स्थापना को लेकर एक तीखा और चेतावनी भरा ट्वीट किया है। उन्होंने राज्य शासन से मांग की है कि 25 जून 2025 से पहले गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) जिले में सभी समुदायों, समाजों, और राजनीतिक दलों के नेताओं की उपस्थिति में “शांति सभा” का आयोजन किया जाए, अन्यथा पूरे छत्तीसगढ़ में हालात “विस्फोटक” हो सकते हैं।

अमित जोगी ने शासन को याद दिलाया कि पूर्व में बलौदाबाजार में प्रशासनिक चूक के कारण आगजनी और निर्दोषों की गिरफ्तारी जैसे हालात बने थे। उन्होंने कहा कि “मैं नहीं चाहता कि मेरे पिता की मूर्ति को लेकर GPM जिले में वैसी ही स्थिति बने।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि मूर्ति जिस ज़मीन पर स्थापित की गई थी, वह निजी भूमि है और इसके संबंध में खुद GPM कलेक्टर द्वारा 20 जून 2025 को जारी आदेश में इसे प्रमाणित किया गया है। उनका दावा है कि इस भूमि पर उनका कानूनी आधिपत्य है, इसलिए बिना अनुमति कोई भी मूर्ति वहां स्थापित नहीं की जा सकती।

“अगर जमीन शासकीय सिद्ध हो जाए, तो खुद हटाऊंगा मूर्ति”

अमित जोगी ने चुनौती देते हुए कहा कि अगर कोई यह सिद्ध कर दे कि उक्त ज़मीन शासकीय है, तो वे स्वयं अपने व्यय पर स्वर्गीय डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मूर्ति वहां लगवाएंगे।

चोरी की घटना और माफ़ी का उल्लेख

उन्होंने यह भी बताया कि 25 मई 2025 की रात दो व्यक्तियों ने उनकी पिता की प्रतिमा को चोरी किया था, जो छत्तीसगढ़ के मूल निवासी नहीं थे। जोगी ने उन्हें स्वर्गीय अजीत जोगी की आत्मकथा ‘सपनों का सौदागर’ भेजकर माफ़ कर दिया और आशा जताई कि वे प्रतिमा को 25 जून को पुनः स्थापित करेंगे।

राजनीतिक संदर्भ और वैचारिक संघर्ष का उल्लेख

अपने ट्वीट में अमित जोगी ने शासन पर धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास करने का आरोप लगाते हुए कहा कि “नर्मदांचल की इस पावन धरती को नर्क नहीं बनने दूंगा।” उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा के कुछ विचारों की आलोचना करते हुए भारत की सनातन संस्कृति को “उदारवाद” की परंपरा वाला बताया।

उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत न्याय के लिए उच्च व उच्चतम न्यायालय में जाने की बात भी कही और कहा कि उनका संघर्ष किसी दल विशेष के लिए नहीं बल्कि “नैसर्गिक न्याय” के लिए है।

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Author: Deepak Mittal

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