जब कोई यूज़र फोन एक्सचेंज ऑफर के तहत नया स्मार्टफोन खरीदता है तो पुराना फोन कंपनी या उसके पार्टनर को वापस चला जाता है. ये डिवाइस सीधे एक रिसाइक्लिंग सेंटर या रिफर्बिशिंग यूनिट में भेजे जाते हैं.
वहां सबसे पहले फोन की फिजिकल और टेक्निकल जांच होती है यानी फोन काम कर रहा है या नहीं, उसकी बैटरी और मदरबोर्ड की स्थिति कैसी है और क्या उसमें कोई रिसेल वैल्यू बची है.
अगर फोन की हालत ठीक होती है, तो उसे पूरी तरह से रीफर्बिश किया जाता है. यानी उसकी बैटरी, स्क्रीन या कैमरा जैसे पार्ट्स बदले जाते हैं, सॉफ्टवेयर को रीसेट किया जाता है और उसे नया जैसा बना दिया जाता है. इसके बाद ऐसे फोन को Refurbished Phone के रूप में दोबारा बाजार में बेचा जाता है अक्सर 30% से 50% कम कीमत में. भारत में Amazon Renewed, Cashify और कंपनी के आधिकारिक ऑनलाइन स्टोर इस तरह के फोनों की बिक्री करते हैं.
जो फोन बहुत पुराने या डैमेज होते हैं उनके काम के पुर्जे (components) को निकाल लिया जाता है जैसे कैमरा सेंसर, प्रोसेसर, चार्जिंग पोर्ट, बैटरी या माइक्रोचिप्स. इन पार्ट्स को स्पेयर पार्ट्स मार्केट में बेच दिया जाता है या इन्हें दूसरे नए या रीफर्बिश्ड डिवाइसेज़ में लगाया जाता है. इससे कंपनियां न सिर्फ लागत बचाती हैं बल्कि ई-वेस्ट को भी कम करती हैं.
हर साल करोड़ों पुराने फोन फेंक दिए जाते हैं जिनसे ई-वेस्ट (Electronic Waste) बनता है. इसमें मौजूद रसायन जैसे लेड, मर्करी और कैडमियम पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. इसीलिए, बड़ी टेक कंपनियां जैसे Apple, Samsung और Xiaomi पुराने फोनों को रिसाइक्लिंग प्रोग्राम में शामिल करती हैं. इन डिवाइसेज़ से सोना, तांबा, और एल्युमिनियम जैसे कीमती धातु निकाले जाते हैं जिन्हें नए डिवाइस बनाने में दोबारा उपयोग किया जाता है.
पुराने फोनों से कंपनियों को डबल फायदा होता है एक तरफ वे पर्यावरण-हितैषी छवि बनाती हैं, दूसरी ओर रीफर्बिश्ड और रिसाइकल्ड पार्ट्स से लागत घटाती हैं. इसके अलावा, एक्सचेंज प्रोग्राम ग्राहकों को नए फोन खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं जिससे बिक्री भी बढ़ती है.

Author: Deepak Mittal
