भोपाल/छिंदवाड़ा : मध्यप्रदेश में कोल्ड्रिफ सिरप पर सरकार ने 4 अक्टूबर को बैन लगाया, लेकिन इस निर्णय की असली शुरुआत छिंदवाड़ा से हुई थी। यहां के तत्कालीन कलेक्टर शीलेंद्र सिंह (IAS, 2010 बैच) ने 29 सितंबर को ही इस दवा पर बैन लगाने का आदेश दिया था।
अब इस फैसले के पीछे की इनसाइड स्टोरी सामने आई है — जिसमें दबाव, फोन कॉल्स और बच्चों की ज़िंदगी बचाने का जज़्बा, सब शामिल है।
150 से ज्यादा फोन कॉल्स और भारी दबाव
सूत्रों के मुताबिक, जब शीलेंद्र सिंह ने कोल्ड्रिफ सिरप पर बैन लगाने के मौखिक निर्देश दिए, तो यह खबर भोपाल, दिल्ली और तमिलनाडु तक पहुंच गई। इसके बाद उन्हें देशभर से 150 से ज्यादा फोन कॉल्स आने लगे। कई कॉल्स में कहा गया – ‘दवा अच्छी है, जांच रिपोर्ट आने दो… बैन उल्टा पड़ सकता है।’ लेकिन सिंह ने दबाव झुकने से इनकार कर दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि अगर जांच रिपोर्ट आने तक रोक लगाना बच्चों की जान बचा सकता है, तो वे पीछे नहीं हटेंगे।
“मुझे लगा कुछ गड़बड़ है” – कलेक्टर शीलेंद्र सिंह
पत्रिका से बातचीत में तत्कालीन कलेक्टर शीलेंद्र सिंह ने कहा —
‘दबाव अपनी जगह था, लेकिन मुझे लगा कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है। सिरप को पूरी तरह जिम्मेदार नहीं माना गया था, लेकिन बच्चों की सुरक्षा पहले थी। मैंने फैसला लिया और वरिष्ठ अधिकारियों को जानकारी दी।’
बच्चों की जान बचाने वाला फैसला
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर 29 सितंबर को छिंदवाड़ा प्रशासन ने यह कदम नहीं उठाया होता, तो हालात और गंभीर हो सकते थे।

Author: Deepak Mittal
