बीजापुर (छत्तीसगढ़)।
जहां एक तरफ नक्सलियों के डर से लोग साँसें थामे रहते हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग हैं जो सिर्फ हथियार नहीं उठाते, बल्कि वक्त पर इंसानियत की ढाल बन जाते हैं।
बीजापुर-तेलंगाना बॉर्डर के सुदूर गांव कर्रेगुट्टा के पटेल पारा में उस वक्त हड़कंप मच गया जब एक बुजुर्ग ग्रामीण की अचानक तबीयत बिगड़ गई। अस्पताल दूर था, रास्ते दुर्गम थे और समय बेहद कम।
तभी ग्रामीणों ने पास के सुरक्षा बलों को सूचना दी — और यहीं से शुरू होती है एक देवदूतों की कहानी!
बिना एक पल गंवाए जवान मौके पर पहुंचे, बुजुर्ग को गाड़ी में बैठाया, फिर ट्रैक्टर के सहारे दुर्गम पहाड़ियों और कच्चे रास्तों से होते हुए कैंप तक लाए। वहां जवानों की सूझबूझ और तत्काल चिकित्सा व्यवस्था ने एक अनमोल जान को बचा लिया।
अब बुजुर्ग की स्थिति स्थिर और सुरक्षित है। ग्रामीणों की आंखों में राहत और दिल में सम्मान है। वे कहते हैं,
“ये जवान सिर्फ नक्सलियों से नहीं लड़ते, ये हमारी ज़िंदगी की भी हिफ़ाज़त करते हैं। ये हमारे लिए भगवान से कम नहीं!”
यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि सीमा पर तैनात हर वर्दी सिर्फ सुरक्षा नहीं, सेवा का प्रतीक भी होती है।

Author: Deepak Mittal
