52 वर्षों बाद मिला साथ… जब फिर से गूंज उठीं बचपन की यादें
आदर्श शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला बालोद के 1974 बैच के विद्यार्थियों का स्वर्ण जयंती मिलन समारोह रहा भावनाओं से ओत-प्रोत
रायपुर/बालोद।,,समय भले ही आधी सदी पार कर गया हो, पर मित्रता की डोर उतनी ही मजबूत रही जितनी कभी 1974 में आदर्श शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला बालोद में थी। 52 वर्षों बाद जब सहपाठी एक बार फिर आमने-सामने मिले, तो हंसी, आँसू, अपनापन और पुरानी यादों का सैलाब एक साथ उमड़ पड़ा।लीला बालाजी रिसोर्ट में आयोजित स्वर्ण जयंती सहपाठी मिलन समारोह ने जैसे सबको फिर से उनके स्कूल के दिनों में पहुँचा दिया — वही मासूमियत, वही हंसी-ठिठोली, वही पुरानी बातें और वही स्नेहिल अपनापन।

कार्यक्रम की शुरुआत भगवान गणेश की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुई। दिलीप बाफना ने स्कूल की याद ताजा कराते हुए उसी अंदाज में राष्ट्रगान का नेतृत्व किया, जैसे पुराने दिनों में हुआ करता था।
संयोजक रूपचंद जैन ने स्वागत भाषण में कहा— “जीवन हमें बहुत दूर ले जाता है, पर दिल की कुछ गलियां हमेशा उसी स्कूल के आंगन में ठहर जाती हैं।” उन्होंने सभी साथियों की उपलब्धियों को गौरव की बात बताया और जीवन को सहज व शांतिपूर्ण बनाने के कुछ प्रेरक सुझाव दिए।
52 वर्षों बाद के इस मिलन में न केवल पुराने मित्र, बल्कि उनके जीवनसाथी भी सहभागी बने। मुंबई से श्रीमती जयश्री, नागपुर से श्रीमती उषा और श्रीमती मंदीप, आरंग से श्रीमती यशोदा योगी सहित अनेक साथी दूर-दराज़ से इस अवसर पर पहुँचे। सबने अपना परिचय दिया, जीवन की यात्रा साझा की और पुराने मित्रों से फिर जुड़कर भावुक हो उठे।
कार्यक्रम में श्रीमती द्रोपती कहार, श्रीमती उषा, नरेंद्र काबरा, जसवंत क्लॉडियस, डॉ. डी.पी. देशमुख ने अपने गीतों और शब्दों से समां बाँध दिया।
सनत श्रीवास्तव और रूपचंद जैन ने अपने चुटीले अंदाज में सभी को ठहाकों से सराबोर किया, वहीं जसवंत क्लॉडियस ने पूरे कार्यक्रम को हंसी और भावनाओं के मधुर मिश्रण के साथ संचालित किया।
भाजपा नेता सच्चिदानंद उपासने, जिनकी प्रारंभिक शिक्षा बालोद में हुई थी, ने भी अपने बाल्यकाल की स्मृतियां साझा कर सबका मन मोह लिया।
मंच पर जब उन साथियों को याद किया गया जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, तो माहौल कुछ क्षणों के लिए मौन और श्रद्धा से भर गया।
इंद्र कुमार देवांगन, वासुदेव क्षीरसागर, पन्नालाल जैन, मूलचंद देशलहरे, सबीहा हनफ़ी, डॉ. महेश्वरी योगी, रमेश मिश्रा, नरेश राठी, सुभाष राठी, दयालु राम साहू, महा सिंह ठाकुर, नंदकुमार यादव और उमराव ठाकुर को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई।
समापन के अवसर पर डॉ. डी.आर. देशमुख ने कहा— “यह सिर्फ एक मिलन नहीं, यह उन सुनहरे पलों का पुनर्जन्म है जिन्हें हमने कभी जीया था। यह यादें अब फिर से जीवन का हिस्सा बन गई हैं।” उन्होंने अपनी पुस्तक ‘कला परंपरा’ की प्रतियां भी साथियों को भेंट कीं।कार्यक्रम के बाद सभी साथी अपने पुराने विद्यालय — शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला (वर्तमान में स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट हिंदी विद्यालय) पहुँचे, जहां उन्होंने प्राचार्य अरुण साहू से भेंट की, वृक्षारोपण किया और विद्यार्थियों को प्रेरित किया।
जसवंत क्लॉडियस और डॉ. डी.पी. देशमुख ने छात्रों को जीवन में सफल और आदर्श नागरिक बनने के टिप्स भी दिए।
इस अविस्मरणीय आयोजन को सफल बनाने में रूपचंद गोलछा, जसवंत क्लॉडियस, डी.पी. देशमुख, रियाजुद्दीन कुरैशी, दिलीप बाफना, महावीर टूवानी, सेवक गौतम, लालचंद नूनीवाल, नरेंद्र काबरा, चिंताराम ठाकुर और युसूफ खान सहित अनेक साथियों का सराहनीय योगदान रहा।
52 वर्षों बाद हुए इस मिलन ने यह साबित कर दिया कि समय बीत जाता है, पर सच्चे रिश्ते और यादें कभी बूढ़ी नहीं होतीं…
Author: Deepak Mittal









