मन की बात में प्रधानमंत्री ने की ओडिशा की महिलाओं की पहल की सराहना

Picture of Deepak Mittal

Deepak Mittal

– किर्तन के जरिये बनाग्नि के खतरों को लेकर जागरुक करने व संथाली साड़ी को पुनर्जीवित करने के प्रयासों की प्रशंसा

भुवनेश्वर, 27 जुलाई (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 124वें संस्करण में ओडिशा की दो प्रेरणादायक पहलों की सराहना की, जो सांस्कृतिक संरक्षण और सामाजिक परिवर्तन का अनूठा संगम प्रस्तुत करती हैं।

ये पहल जमीनी स्तर पर महिलाओं के नेतृत्व में संचालित हो रही हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में ओडिशा के क्योंझर जिले की महिलाओं के एक समूह की प्रशंसा की, जिन्होंने पर्यावरणीय जागरूकता के लिए एक अभिनव तरीका अपनाया है। राधाकृष्ण संकीर्तन मंडली नामक यह समूह, प्रमिला प्रधान के नेतृत्व में, कीर्तन और भजन जैसे पारंपरिक भक्ति संगीत का उपयोग करके वनाग्नि के खतरों के प्रति लोगों को जागरूक कर रहा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की विविधता की सबसे सुंदर झलक हमारे लोकगीतों और परंपराओं में मिलती है। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि कीर्तन के माध्यम से लोगों को जंगल की आग के बारे में जागरूक किया जा रहा है? यह सुनने में भले ही आश्चर्यजनक लगे, लेकिन ओडिशा के क्योंझर में ऐसा प्रेरणादायक कार्य हो रहा है।

उन्होंने बताया कि यह महिला समूह गांव-गांव जाकर पारंपरिक भजनों को नए शब्दों के साथ प्रस्तुत करता है, जिनमें अब जंगल संरक्षण और वनाग्नियों के दुष्प्रभावों के संदेश होते हैं। इन गीतों के माध्यम से ग्रामीणों को अपने प्राकृतिक परिवेश की रक्षा के महत्व को समझाया जाता है, जिसमें भक्ति और सामाजिक ज़िम्मेदारी का संगम है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि भक्ति के साथ यह मंडली अब पर्यावरण संरक्षण का मंत्र जप रही है। प्रमिला प्रधान जी की रचनात्मकता और नेतृत्व ने पारंपरिक संगीत को एक नया उद्देश्य दिया है। यह हमें दिखाता है कि हमारी लोक परंपराएं केवल अतीत की धरोहर नहीं हैं-वे आज भी समाज को दिशा देने की शक्ति रखती हैं।”

इसी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने ओडिशा की एक और उल्लेखनीय पहल की भी सराहना की-मयूरभंज ज़िले की 650 से अधिक आदिवासी महिलाओं द्वारा पारंपरिक संथाली साड़ी का पुनरुद्धार। कभी विलुप्ति की कगार पर खड़ी इस पारंपरिक साड़ी को इन महिलाओं ने न केवल पुनर्जीवित किया है, बल्कि इसके माध्यम से वे आत्मनिर्भर भी बन रही हैं। ये महिलाएं केवल कपड़े नहीं बना रहीं, वे अपनी पहचान भी गढ़ रही हैं ।

Deepak Mittal
Author: Deepak Mittal

Leave a Comment

Leave a Comment