अदाणी के कॉपर प्लांट में अयस्क संकट गहराया: जरूरत का 10% भी नहीं मिल रहा, उत्पादन क्षमता पर बड़ा खतरा

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 ग्लोबल माइनिंग बाधाओं और चीन की बढ़ती स्मेल्टिंग क्षमता के कारण कच्छ कॉपर को भारी कमी, 1.6 मिलियन टन की जरूरत के मुकाबले सिर्फ 147,000 टन अयस्क मिला

नई दिल्ली: भारत के अरबपति कारोबारी गौतम अदाणी के गुजरात स्थित 1.2 बिलियन डॉलर (10,687 करोड़ रुपये) के कॉपर स्मेल्टर को उत्पादन संकट का सामना करना पड़ रहा है। 5 लाख टन सालाना उत्पादन क्षमता वाले इस प्लांट को जितने अयस्क (कॉपर कंसन्ट्रेट) की जरूरत है, उसका 10% से भी कम मिल पा रहा है।

कस्टम डेटा के अनुसार, कच्छ कॉपर लिमिटेड—जिसने कई बार देरी के बाद जून 2025 में उत्पादन शुरू किया था—अक्टूबर 2025 तक 10 महीनों में सिर्फ 147,000 टन कॉपर कंसन्ट्रेट इंपोर्ट कर सकी। तुलना के लिए, प्रतिद्वंद्वी हिंडाल्को इंडस्ट्रीज इसी अवधि में 1 मिलियन टन से अधिक अयस्क खरीद चुकी है।

क्यों कम हुई सप्लाई?

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, कच्छ कॉपर को फुल कैपेसिटी पर चलाने के लिए सालाना 1.6 मिलियन टन कंसन्ट्रेट की जरूरत है। लेकिन इस साल वैश्विक स्तर पर कई बड़े खदान प्रोजेक्ट बाधित रहे, जिनमें शामिल हैं—

  • Freeport-McMoRan Inc.

  • Hudbay Minerals Inc.

  • Ivanhoe Mines Ltd.

  • Codelco (चिली की सरकारी कंपनी)

इन रुकावटों से दुनियाभर में कॉपर अयस्क की सप्लाई बुरी तरह प्रभावित हुई है।

इसके अलावा चीन की बढ़ती स्मेल्टिंग क्षमता ने भी संकट को बड़ा किया है। चीन अधिक मात्रा में कंसन्ट्रेट खरीद रहा है और कम मार्जिन पर काम कर रहा स्मेल्टर, वैश्विक उत्पादकों को प्रोडक्शन कम करने या बंद करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।

ट्रीटमेंट और रिफाइनिंग चार्ज में ऐतिहासिक गिरावट

सप्लाई कम होने का सीधा असर Treatment & Refining Charges (TCRC) पर पड़ा है।
ये चार्ज माइनर्स द्वारा कॉपर स्मेल्टर को दिए जाते हैं, लेकिन कमी के चलते ये रिकॉर्ड लो लेवल पर आ गए हैं।

इसका मतलब—
स्मेल्टर्स अब अयस्क हासिल करने के लिए बेहद कम मुनाफे पर काम करने को मजबूर हैं।
नई कंपनियों—जैसे कच्छ कॉपर—के लिए ये खास तौर पर चुनौतीपूर्ण है क्योंकि:

  • प्लांट की मेंटेनेंस कॉस्ट बढ़ रही है

  • प्रोडक्शन धीरे-धीरे ही बढ़ पाएगा

  • भविष्य में क्षमता बढ़ाने की योजना पर भी असर पड़ेगा

भारत की आत्मनिर्भरता के प्रयासों पर असर

कच्छ कॉपर की धीमी शुरुआत यह संकेत देती है कि भारत के मेटल सेक्टर में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की कोशिशें कठिन साबित हो सकती हैं

देश में:

  • इंफ्रास्ट्रक्चर, पावर और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में कॉपर की डिमांड तेजी से बढ़ रही है

  • घरेलू अयस्क भंडार और प्रोसेसिंग क्षमता अभी भी सीमित है

ऐसे में वैश्विक सप्लाई में व्यवधान का सीधा असर घरेलू उत्पादन पर पड़ रहा है।

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Author: Deepak Mittal

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