एक ओर प्रदेश सरकार शिक्षकों की तैनाती और युक्तियुक्तकरण के जरिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का दम भर रही है, वहीं दूसरी ओर ज़मीनी हकीकत यह है कि स्कूल खुलने से पहले ही शिक्षकों को किताबों की जगह चावल की बोरियों के बीच खड़ा कर दिया गया है।
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक कथित आदेश ने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की गंभीरता पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। वाड्रफनगर बलरामपुर-रामानुजगंज जिले से जारी इस आदेश में शिक्षकों और प्रधान पाठकों को चावल वितरण की जिम्मेदारी सौंप दी गई है वो भी नोडल अधिकारियों के निर्देशन में। आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि शिक्षकों को अग्रिम चावल भंडारण और तीन माह की एकमुश्त आपूर्ति का जिम्मा निभाना होगा।
आश्चर्य की बात यह है कि यह आदेश ऐसे समय में जारी हुआ है जब प्रदेश में शिक्षा सत्र की शुरुआत शाला उत्सव के साथ 16 जून से होने जा रही है, और शिक्षा विभाग स्वयं यह दावा कर रहा है कि अब कोई भी स्कूल शिक्षकविहीन नहीं रहेगा। पर वास्तव में हालात यह हैं कि बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षक अब बच्चों को अनदेखा कर चावल का हिसाब-किताब लिखने में जुटाए जा रहे हैं।
शिक्षा का ऐसा मखौल इससे पहले शायद ही कभी देखा गया हो। यह न केवल नीति निर्माताओं की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि शिक्षकों को अब शिक्षा कर्मी नहीं, बल्कि बहुउपयोगी सरकारी संसाधन समझ लिया गया है कभी जनगणना में, कभी चुनाव में, और अब राशन वितरण में।
इस पूरे मामले ने न केवल शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर करारा तमाचा मारा है, बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि योजनाओं का क्रियान्वयन ज़मीनी स्तर पर किस कदर अव्यवस्थित और अदूरदर्शी है। अगर यही रवैया रहा, तो युक्तियुक्तकरण के नाम पर किए जा रहे सभी प्रयास सिर्फ कागज़ी खानापूर्ति बनकर रह जाएंगे।
इस वायरल आदेश की पुष्टि नवभारत टाइम्स 24×7 नहीं करता है।
