43 साल तक मौत का सौदागर रहा नक्सली आखिर झुका! 10 लाख के इनामी DVCM कैडर ने किया सरेंडर
बस्तर-तेलंगाना सीमा पर आतंक का पर्याय रहा मंदा रूबेन अब कानून के हवाले
बस्तर। छत्तीसगढ़ के नक्सल मोर्चे पर एक बड़ा मोड़ आया है। लगभग 43 साल तक सक्रिय और 10 लाख रुपए के इनामी नक्सली ने आखिरकार हथियार डाल दिए। कभी बस्तर और तेलंगाना में दहशत का दूसरा नाम रहा यह नक्सली अब तेलंगाना पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर चुका है।
यह कुख्यात नक्सली मंदा रूबेन उर्फ कन्नना उर्फ मंगना उर्फ सुरेश (67) है, जो मूल रूप से तेलंगाना के हनुमाकोंडा जिले के हसनपर्थी मंडल के बंगापाडु गांव का निवासी है। बताया जा रहा है कि मंदा रूबेन 1979 में वारंगल से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था, तभी वह रैडिकल स्टूडेंट्स यूनियन के संपर्क में आया और 1981 में भूमिगत होकर नक्सली संगठन से जुड़ गया।
1986 तक उसने राष्ट्रीय उद्यान दलम में सदस्य के रूप में काम किया और बाद में लंकापापिरेड्डी दलम का कमांडर बना। 1987 से 1991 के बीच उसने कोंटा क्षेत्र में 6 लोगों की हत्या की थी। इसके अलावा वह गोलापल्ली-मरईगुड़ा हमले (1988) में भी शामिल रहा, जिसमें 20 CRPF जवान शहीद हो गए थे।
इतना ही नहीं, मंदा रूबेन येतिगडू हमले और तारलागुड़ा थाना हमला (1990) जैसे खूनी घटनाओं में भी शामिल रहा। इसके बाद छत्तीसगढ़ पुलिस ने उसे एक ठिकाने से गिरफ्तार किया था।
सालों तक बस्तर और तेलंगाना की सीमाओं में आतंक फैलाने वाले इस नक्सली ने अब अपने हिंसक रास्ते से लौटने का फैसला किया है। उसका सरेंडर न केवल सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी सफलता है, बल्कि नक्सल मोर्चे पर शांति बहाली की दिशा में भी एक अहम कदम माना जा रहा है।

Author: Deepak Mittal
