
(जे के मिश्र ) : बिलासपुर: पुराने बस स्टैंड की कीमती आवासीय जमीन को नौ टुकड़ों में बांटकर बेच दिया गया है, और अब वहां पर अवैध दुकानें बनाई जा रही हैं।
जमीन की खरीद के बाद भी, मालिक ने इसे व्यवसायिक उपयोग के लिए बदलने की कोई प्रक्रिया नहीं की है, जिससे नगर निगम के शुल्क से बचा जा सके। इस गड़बड़ी में नगर निगम और राजस्व विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत भी उजागर हो रही है।
महुआ होटल की जमीन को गिराकर उसके मालिक ने इसे आठ हिस्सों में बांट दिया और अलग-अलग लोगों को बेच दिया। इन नौ लोगों ने रजिस्ट्री कराई है, लेकिन यह जमीन अभी भी आवासीय के रूप में ही दर्ज है।
इसी हिसाब से संपत्ति कर का निर्धारण भी किया जा रहा था। बिक्री के बाद जमीन को व्यवसायिक श्रेणी में बदलना अनिवार्य था, लेकिन खरीदारों ने बिना कोई जानकारी दिए जमीन की बिक्री कर दी। अब इस जमीन पर चार दुकानों का निर्माण शुरू हो गया है, और दीवारें खड़ी हो चुकी हैं।
जब इस मामले में खरीदार अनिल रावलानी से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि जमीन खरीदते समय उन्हें इसकी श्रेणी के बारे में जानकारी नहीं थी, और यदि ऐसा है, तो वे सौदा रद्द कर देंगे। वहीं, पूजा सिदारा नाम की एक अन्य खरीदार ने जमीन खरीदने की बात से साफ इनकार कर दिया।
इस जमीन को खरीदने वालों में महक आहुजा, विजय मोटवानी, मनोहर डंगवानी, रामचंद्र लालचंदानी, दिनेश कुमार माखीजा, रेखा रावलानी, पूजा सिदारा, अनिल रावलानी, और विशाल सिदारा शामिल हैं।
इन सभी ने जमीन खरीदते समय इसके आवासीय श्रेणी में होने का लाभ उठाया और बाद में इसे व्यवसायिक उपयोग के लिए बदलने की कोई कोशिश नहीं की।
अधिकारियों की भूमिका पर सवाल
आवासीय भूमि का व्यवसायिक उपयोग करने के लिए डायवर्सन का शुल्क देना होता है, लेकिन इस जमीन पर यह प्रक्रिया नहीं अपनाई गई है। इसके चलते सरकार को हर साल लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है। इस गड़बड़ी में नगर निगम और राजस्व विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत होने की संभावना है। एसडीएम कार्यालय और अन्य अधिकारियों को इस बारे में जानकारी होने के बावजूद भी, अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
खरीदारों को हो सकता है नुकसान
बिना सही दस्तावेजों के जमीन की खरीद करने पर, नगर निगम द्वारा जांच के बाद खरीदारों को व्यवसायिक उपयोग के हिसाब से भारी शुल्क अदा करना होगा। इससे खरीदारों को आर्थिक नुकसान होगा और वे कानूनी उलझनों में भी फंस सकते हैं।
वर्जन
सुरेश शर्मा, भवन अधिकारी नगर निगम ने बताया कि मद परिवर्तन का अधिकार एसडीएम के पास होता है। अगर दस्तावेजों में कोई संदेह होता है, तो इसे टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग को भेजा जाता है। निगम के पास उपलब्ध दस्तावेजों में जमीन का उपयोग व्यवसायिक के रूप में ही दर्ज है।
