शैलेश शर्मा, जिला ब्यूरो रायगढ़ | नवभारत टाइम्स 24×7.in
रायगढ़ की राजनीति इन दिनों एक अजीब व्यंग्य की तरह सामने आई है। पूर्व सांसद विष्णुदेव साय और गोमती साय को उनके कार्यकाल के दौरान सरकारी बंगले की सुविधा मिली, लेकिन मौजूदा आदिवासी सांसद राधेश्याम राठिया चुने जाने के एक वर्ष बाद भी आवास सुविधा से वंचित हैं।
रायगढ़ लोकसभा क्षेत्र में यह परंपरा रही है कि सांसदों को कार्यकाल में सरकारी बंगला मिलता रहा है। विष्णुदेव साय और गोमती साय को यह सुविधा मिली, लेकिन आदिवासी सांसद राठिया को अब तक ठिकाना नहीं मिला। यह केवल सुविधा का अभाव नहीं, बल्कि आदिवासी जनप्रतिनिधि के सम्मान और गरिमा से समझौते जैसा है।
भाजयुमो के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष रवि भगत ने फेसबुक पर लिखा— “क्या रायगढ़ लोकसभा के आदिवासी सांसद को बंगला पाने के लिए अधिकारियों की चौखट पर नाक रगड़नी पड़ेगी?”
उनकी यह टिप्पणी भाजपा संगठन और सरकार की कथनी–करनी पर सीधा सवाल खड़ा करती है।
यह विवाद सिर्फ़ बंगले तक सीमित नहीं, बल्कि प्रशासन की प्राथमिकताओं और आदिवासी प्रतिनिधित्व की उपेक्षा का आईना है।
रायगढ़ जैसे बड़े संसदीय क्षेत्र का सांसद ही यदि बेघर है, तो जनता की स्थिति का अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं।

Author: Deepak Mittal
