बकाया बिल चुकाने के बाद भी नहीं जुड़ा बिजली कनेक्शन, मकान मालिक–किरायेदार विवाद पर दिल्ली हाई कोर्ट का अहम फैसला

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कोर्ट बोली– बिजली जीवन के अधिकार का हिस्सा, NOC के नाम पर सप्लाई से वंचित नहीं किया जा सकता

दिल्ली में मकान मालिक और किरायेदार के बीच बिजली कनेक्शन को लेकर चल रहे विवाद पर दिल्ली हाई कोर्ट ने बड़ा और अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि बिजली संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का हिस्सा है और किसी भी व्यक्ति को, जो किसी प्रॉपर्टी पर कानूनी रूप से कब्ज़े में है, सिर्फ मकान मालिक–किरायेदार विवाद के कारण बिजली से वंचित नहीं किया जा सकता।

यह फैसला मैकी जैन बनाम BSES राजधानी पावर लिमिटेड मामले में सुनाया गया। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस मिनी पुष्करणा ने BSES राजधानी पावर लिमिटेड को निर्देश दिया कि वह पश्चिमी दिल्ली स्थित एक रिहायशी मकान के तीसरे फ्लोर पर तत्काल बिजली सप्लाई बहाल करे

NOC की शर्त को कोर्ट ने माना अनुचित

कोर्ट ने कहा कि बिजली एक बुनियादी जरूरत है और इसे मकान मालिक से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) से जोड़ना गलत है। जब तक याचिकाकर्ता संबंधित प्रॉपर्टी में कानूनी रूप से रह रही है, तब तक उसे बिजली से वंचित नहीं किया जा सकता।

क्या है पूरा मामला

याचिकाकर्ता मैकी जैन ने कोर्ट को बताया कि वह वर्ष 2016 से रजिस्टर्ड लीज डीड के तहत नई दिल्ली की एक प्रॉपर्टी में किरायेदार के रूप में रह रही हैं। नवंबर 2025 में बकाया बिजली बिल जमा करने के बावजूद उनके किराए वाले हिस्से की बिजली काट दी गई और मीटर हटा दिया गया।

याचिकाकर्ता के अनुसार, बिजली मीटर मकान मालिक के नाम पर रजिस्टर्ड था, लेकिन वह नियमित रूप से बिल का भुगतान कर रही थीं। आर्थिक परेशानी के कारण सितंबर और अक्टूबर 2025 का बिल समय पर जमा नहीं हो सका, जिसके चलते 28 नवंबर 2025 को बिजली काट दी गई। उसी दिन पूरा बकाया चुका देने के बावजूद BSES ने सप्लाई बहाल करने से इनकार कर दिया और मकान मालिक से NOC लाने की शर्त रख दी।

मकान मालिक ने NOC देने से किया इनकार

मैकी जैन ने कोर्ट को बताया कि मकान मालिक ने NOC देने से साफ इनकार कर दिया, जिससे वह लंबे समय तक बिना बिजली के रहने को मजबूर हो गईं। इसके बाद उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

BSES का पक्ष

BSES राजधानी पावर लिमिटेड ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि बिजली कनेक्शन मकान मालिक के नाम पर था और बकाया भुगतान न होने के कारण सप्लाई काटी गई। कंपनी ने यह भी दलील दी कि मकान मालिकों ने तीसरे फ्लोर पर बिजली बहाल न करने के निर्देश दिए थे और मीटर उनके ताले में था, जिससे उनके सहयोग के बिना सप्लाई बहाल करना संभव नहीं था।

कोर्ट का स्पष्ट संदेश

दिल्ली हाई कोर्ट ने सभी दलीलों को सुनने के बाद साफ कहा कि बिजली जैसे बुनियादी अधिकार को निजी विवादों का शिकार नहीं बनाया जा सकता। अदालत के इस फैसले को किरायेदारों के अधिकारों की सुरक्षा के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

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Author: Deepak Mittal

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