नक्सल मुठभेड़ में ढेर हुई सेंट्रल जोनल कमेटी की मेंबर अरुणा: दोगुनी उम्र के माओवादी नेता से की थी जंगल में शादी, जानिए कौन थी ये महिला नक्सली

Picture of Deepak Mittal

Deepak Mittal

रायपुर, 18 जून 2025 — माओवादी संगठन की सेंट्रल जोनल कमेटी की सदस्य अरुणा मंगलवार सुबह आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीतारामराजू जिले के जंगलों में हुई पुलिस और ग्रेहाउंड्स बल की मुठभेड़ में मारी गई। अरुणा लंबे समय से नक्सल गतिविधियों में सक्रिय थी और उस पर 20 लाख रुपये का इनाम घोषित था।

25 साल पहले थामा था बंदूक का रास्ता

विशाखापट्टनम जिले के पेंडुर्थी मंडल के करकवानीपालेम गांव की रहने वाली अरुणा ने करीब ढाई दशक पहले माओवादी विचारधारा अपनाई थी। उसने संगठन में एक लंबा सफर तय करते हुए पूर्वी डिवीजन सचिव और फिर सेंट्रल जोनल कमेटी की सदस्य तक का दर्जा हासिल किया था।

प्रेम, विवाह और संगठन में संघर्ष

अरुणा की जिंदगी में बड़ा मोड़ तब आया, जब वह माओवादी केंद्रीय समिति के वरिष्ठ नेता चलपति उर्फ जयराम के संपर्क में आई। चलपति चिंत्तूर जिले के माटेमपल्ली गांव का रहने वाला था और संगठन के बड़े रणनीतिकारों में गिना जाता था।

अरुणा ने चलपति से जंगल में ही विवाह कर लिया, जबकि वह उम्र में उससे लगभग दोगुना बड़ा था। इस रिश्ते को लेकर संगठन में काफी हलचल मची और चलपति को एक साल के लिए सस्पेंड भी किया गया, लेकिन दोनों साथ बने रहे और जंगल में ही वैवाहिक जीवन जिया।

एक सेल्फी से उजागर हुई लोकेशन

पिछले साल सुरक्षा एजेंसियों को एक सेल्फी हाथ लगी, जिसमें अरुणा और चलपति साथ दिखे। इस डिजिटल सबूत के आधार पर सुरक्षा बलों ने इन दोनों की लोकेशन को ट्रैक किया। जनवरी 2025 में छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के जंगलों में हुई मुठभेड़ में चलपति मारा गया।

तब यह कयास लगाया गया कि अरुणा भी साथ थी, लेकिन वह बच निकली थी। पांच महीने बाद, अब अरुणा की भी मौत मुठभेड़ में हो गई

मुठभेड़ में तीन नक्सली ढेर

इस ऑपरेशन में अरुणा के साथ माओवादी केंद्रीय समिति के सदस्य गजराला रवि उर्फ उदय और एसीएम स्तर की महिला नक्सली अंजू भी मारे गए। घटनास्थल से हथियार और दस्तावेज भी बरामद हुए हैं।

अपनों को खोया, फिर भी न टूटी

अरुणा का भाई आज़ाद भी नक्सली था और गलीकोंडा एरिया कमांडर था। वह भी 2015 में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। इसके बाद भी अरुणा नहीं टूटी। बीते वर्षों में वह गंभीर बीमारी से जूझ रही थी, फिर भी उसने संगठन नहीं छोड़ा।

आत्मसमर्पण का विचार, लेकिन फैसला नहीं

सूत्रों के अनुसार, अरुणा और चलपति कई बार आत्मसमर्पण का मन बना चुके थे, लेकिन आख़िरी वक्त में वे पीछे हट गए। बंदूक, विचारधारा और जंगल के जीवन से बंधी इस जोड़ी का अंत भी मुठभेड़ में मौत के साथ हुआ।

अरुणा की कहानी संघर्ष, कट्टर विचारधारा और अंततः आत्मविनाश की एक मिसाल बनकर रह गई है — जो बताती है कि कैसे एक बार जंगल की राह पकड़ने वाले कई लोग जीवन भर उससे बाहर नहीं निकल पाते।

Deepak Mittal
Author: Deepak Mittal

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *