मोबाइल को लेकर डांट बनी जानलेवा, नाबालिग बेटी ने फांसी लगाकर की खुदकुशी

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पखांजूर: छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले से एक बेहद दर्दनाक और झकझोर देने वाला मामला सामने आया है। मोबाइल फोन के इस्तेमाल को लेकर पिता की डांट से आहत एक नाबालिग बेटी ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। यह घटना बांदे थाना क्षेत्र की बताई जा रही है। सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और मामले की जांच शुरू कर दी है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, नाबालिग बेटी को मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल को लेकर पिता ने डांटा था। इस फटकार से वह काफी आहत हो गई और उसके बाद चुपचाप व परेशान रहने लगी। परिजनों के मुताबिक, उसने अपनी नाराजगी या मानसिक स्थिति किसी से साझा नहीं की। इसी बीच बुधवार सुबह जब घर के अन्य सदस्य किसी काम से बाहर गए हुए थे, तब उसने घर के अंदर फांसी लगाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।

जब परिजन वापस लौटे तो घर के अंदर का दृश्य देखकर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। बेटी फांसी के फंदे पर लटकी हुई थी। परिजनों ने उसे तुरंत नीचे उतारने का प्रयास किया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। इसके बाद पुलिस को सूचना दी गई।

सूचना मिलते ही बांदे थाना पुलिस मौके पर पहुंची और शव को कब्जे में लेकर पंचनामा कार्रवाई की। इसके बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। पुलिस ने परिजनों और आसपास के लोगों से पूछताछ शुरू कर दी है। प्रारंभिक जांच में आत्महत्या का कारण मोबाइल फोन को लेकर हुआ विवाद बताया जा रहा है, हालांकि पुलिस हर पहलू से मामले की जांच कर रही है।

इस घटना के बाद पूरे परिवार में कोहराम मच गया है। माता-पिता का रो-रोकर बुरा हाल है। बेटी की अचानक मौत से परिवार गहरे सदमे में है। गांव और मोहल्ले में भी शोक का माहौल बना हुआ है।

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि यह एक अत्यंत संवेदनशील मामला है। नाबालिग की आत्महत्या के पीछे मानसिक तनाव, भावनात्मक दबाव या अन्य कारण भी हो सकते हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट और जांच पूरी होने के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी। फिलहाल पुलिस ने मर्ग कायम कर मामले की विस्तृत जांच शुरू कर दी है।

यह घटना समाज के लिए एक गंभीर चेतावनी भी है। विशेषज्ञों का कहना है कि किशोर अवस्था में बच्चे भावनात्मक रूप से बेहद संवेदनशील होते हैं। ऐसे समय में संवाद की कमी, डांट-फटकार और दबाव उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल सकता है। बच्चों से बातचीत, उन्हें समझना और समय पर भावनात्मक सहारा देना बेहद जरूरी है।

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Author: Deepak Mittal

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