शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण होना चाहिए: बृजमोहन अग्रवाल
लोकसभा सांसद ने अंतर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का किया शुभारंभ, भारतीय ज्ञान–परंपरा को शिक्षा का आधार बनाने पर जोर
रायपुर। लोकसभा सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि भारत का लोकतंत्र केवल 75 वर्षों की यात्रा नहीं है, बल्कि यह हजारों वर्षों पुरानी भारतीय ज्ञान–परंपरा का आधुनिक पुनर्जन्म है। वे शासकीय जे. योगानंदम् छत्तीसगढ़ महाविद्यालय में आयोजित “भारत में लोकतंत्र के 75 वर्ष एवं भारतीय ज्ञान परंपरा” विषयक तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भारतीय वेद–परंपरा ने मन, बुद्धि, शरीर और आत्मा—चारों आयामों को संतुलित करने की अनोखी दृष्टि प्रदान की है।
“विदेशी लेखकों के बजाय भारतीय साहित्य को दें प्राथमिकता”
सांसद अग्रवाल ने कहा कि विश्व अनेक प्रकार के राजनीतिक उथल-पुथल और जन आंदोलनों से गुजर रहा है, जबकि भारत की स्थिरता और शांति उसकी गहरी लोकतांत्रिक जड़ों का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से समय–समय पर भारतीय ज्ञान–परंपरा को न केवल कमतर दिखाने का प्रयास हुआ बल्कि विदेशी विचारकों का अत्यधिक महिमामंडन भी हुआ।
उन्होंने शिक्षकों और शोधार्थियों से आह्वान किया कि
क्लासरूम में विदेशी लेखकों से अधिक वेद–पुराण, भारतीय शोध और साहित्य को महत्व दिया जाए।
अग्रवाल ने कहा — “हमारी शिक्षा प्रणाली केवल डिग्री देने तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि राष्ट्र निर्माण में योगदान देने वाली होनी चाहिए।”
भारतीय ज्ञान–परंपरा को जन–जन तक पहुँचाना ही वास्तविक अमृत महोत्सव
सांसद ने कहा कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और सफलताओं पर गर्वपूर्वक बोलने का दिन ही राष्ट्र के नवजागरण और आत्म–सशक्तिकरण का प्रतीक बनेगा। उन्होंने इस शोध संगोष्ठी को युवाओं में भारतीय ज्ञान, साहित्य, संस्कृति और लोकतंत्र की समझ को गहरा करने की दिशा में महत्वूपर्ण कदम बताया।
कार्यक्रम में कलिंगा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आर. श्रीधर, उद्योगपति विजय गोयल, महाविद्यालय प्राचार्य प्रो. तपेश गुप्ता, शिक्षकगण और शोधार्थी उपस्थित रहे। संगोष्ठी में प्राचीन ग्रंथों, वेद–पुराण, भारतीय संस्कृति तथा आधुनिक शोध के माध्यम से भारत के लोकतांत्रिक विकास पर विशेषज्ञों ने विस्तृत व्याख्यान दिए।
संगोष्ठी आधुनिक शिक्षा में भारतीय परंपराओं की प्रासंगिकता पर केंद्रित
संगोष्ठी का उद्देश्य युवाओं में भारतीय ज्ञान–परंपरा और आधुनिक शिक्षा के बीच संतुलन स्थापित करना है। इसमें विभिन्न विद्वानों ने बताया कि कैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में निहित विचार आज की शिक्षण प्रणाली को दिशा दे सकते हैं।
अंत में अग्रवाल ने कहा कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य डिग्री नहीं, बल्कि राष्ट्र को मजबूत बनाना है। उन्होंने युवाओं और शिक्षकों से अपील की कि वे भारतीय ज्ञान–परंपरा को बढ़ावा देकर भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएँ।
Author: Deepak Mittal









