चक्रधर समारोह 2025 : आठवें दिन कथक की प्रस्तुतियों ने बाधा समां

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Deepak Mittal

चक्रधर समारोह का आठवां दिन कथक नृत्य की प्रस्तुतियों से सराबोर रहा। रायगढ़ में आयोजित इस समारोह में आठवें दिन मंच पर सात वर्षीय कथक नृत्यांगना अंशिका सिंघल के साथ दुर्ग, बेंगलुरू, रायगढ़ घराने, जबलपुर के कथक कलाकरों ने अनुपम प्रस्तुतियां दी।

चक्रधर समारोह 2025

सात वर्षीय आशिका सिंघल की कथक प्रस्तुति ने मोहा मन

चक्रधर समारोह  के आठवें दिन का शुभारंभ नन्हीं बाल कलाकार आशिका सिंघल की कथक नृत्य प्रस्तुति से हुआ। केवल 7 वर्ष की आयु में ही आशिका ने अपनी सधी हुई ताल और भावपूर्ण अभिनय से उपस्थित दर्शकों का दिल जीत लिया। आशिका ने मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो जैसे भक्ति गीत पर कथक नृत्य प्रस्तुत कर मंच की गरिमा बढ़ाई। उनकी लय, ताल और भावाभिव्यक्ति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। रायपुर की बाल कलाकार आशिका सिंघल विगत चार वर्षों से कथक की साधना कर रही हैं। उन्होंने विद्यालय एवं विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर कई उपलब्धियां हासिल की हैं।

चक्रधर समारोह 2025

दुर्ग की देविका दीक्षित ने कथक में परंपरा और नवाचार का अनूठा संगम प्रस्तुत किया

दुर्ग की कथक नृत्यांगना देविका दीक्षित ने अपनी प्रस्तुति से दर्शकों का मन मोह लिया। लगभग चौबीस वर्षों से कथक साधना में रमीं देविका ने परंपरा और नवीनता का ऐसा संगम प्रस्तुत किया, जिसमें भाव, लय और ताल की उत्कृष्टता स्पष्ट झलकी। उनकी प्रस्तुति में कथक की गहराई के साथ आधुनिक दृष्टि का समावेश दिखाई दिया। दर्शकों ने इस प्रतिभाशाली कलाकार के समर्पण और साधना से सजी प्रस्तुति को तालियों की गडग़ड़ाहट के साथ सराहा।
देविका दीक्षित ने पाँच वर्ष की उम्र से ही नृत्य यात्रा की शुरुआत की और गुरु श्रीमती उपासना तिवारी एवं आचार्य पंडित कृष्ण मोहन मिश्र से प्रशिक्षण प्राप्त किया। कथक में ‘कोविद‘ और ‘विशारद‘ उपाधियाँ अर्जित करने के साथ उन्हें नेशनल नृत्य शिरोमणि पुरस्कार, श्रेष्ठ भारत सम्मान और गोपीकृष्ण नेशनल अवॉर्ड सहित कई राष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। दिल्ली के कामानी ऑडिटोरियम से लेकर बनारस लिट फेस्ट तक उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन कर सराहना प्राप्त की है। नृत्य के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी देविका ने अपनी अलग पहचान बनाई है। लंदन यूनिवर्सिटी कॉलेज से अर्बन डिजाइन में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद वे वर्तमान में आईआईएम, रायपुर से एमबीए की पढ़ाई कर रही हैं।

चक्रधर समारोह 2025

चक्रधर समारोह 2025

बेंगलुरु के डॉ.लक्ष्मीनारायण जेना और उनकी टीम की कथक प्रस्तुति ने रचा अद्भुत समा

बेंगलुरू के प्रख्यात कथक कलाकार डॉ. लक्ष्मीनारायण जेना और उनकी टीम ने कथक की ऐसी अनुपम प्रस्तुति दी कि दर्शक भावविभोर होकर तालियों की गडग़ड़ाहट से सभागार गूंजाते रहे। डॉ. जेना ने लखनऊ-जयपुर घराने की बारीकियों को अपने नृत्य में समाहित कर भारतीय परंपरा और संस्कृति का अद्भुत चित्रण प्रस्तुत किया। उनकी भाव-भंगिमाएं, पदचालन और ताल की सटीकता ने कथक की शास्त्रीयता को मंच पर जीवंत कर दिया। प्रस्तुति में उनके साथ श्री मैसुर बी.नागराज, श्री अजय कुमार सिंह, श्री रघुपति झा और श्री विजय ने संगत कर समां और भी भव्य बना दिया। भाव, राग और ताल के इस अनूठे संगम ने समारोह में उपस्थित कला प्रेमियों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

चक्रधर समारोह 2025

रायगढ़ घराने की कथक परंपरा को वासंती वैष्णव ने किया जीवंत 

रायगढ़ घराने की विशिष्ट छाप छोड़ते हुए बिलासपुर की सुप्रसिद्ध कथक नृत्यांगना श्रीमती वासंती वैष्णव, सुश्री ज्योतिश्री और उनकी टीम ने शास्त्रीय नृत्य की ऐसी मोहक प्रस्तुति दी, जिसने उपस्थित दर्शकों को भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम की शुरुआत गणेश स्तुति से हुई, जिसके पश्चात तबले की उठान, शिव तांडव, तबला और घुंघरुओं की जुगलबंदी तथा वर्षा ऋतु की अद्भुत झलकियों को नृत्य में पिरोया गया। सुर, ताल और भाव की इस अनूठी संगति ने सभागार में ऐसा वातावरण निर्मित किया कि दर्शक मंत्रमुग्ध होकर तालियों की गडग़ड़ाहट से कलाकारों का उत्साहवर्धन करते रहे।
ज्ञात हो कि रायगढ़ घराने की स्थापना राजा चक्रधर सिंह द्वारा की गई थी। कला-संरक्षक के रूप में उनकी दूरदृष्टि और नृत्य-प्रेम के कारण विभिन्न घरानों के महान गुरुओं व कलाकारों ने रायगढ़ को अपना केंद्र बनाया। यहीं से मेघ पुष्प, चमक बिजली, ब्रह्म बीज और दाल-बादल परन जैसी अनुपम नृत्य बंदिशों की रचना हुई, जो आज भी रायगढ़ घराने की पहचान बनी हुई हैं। इस घराने की एक विशेषता यह भी है कि इसके कलाकार या तो अत्यंत धीमी या फिर अत्यंत तेज गति में अपनी प्रस्तुति देते हैं, जो कथक की गहराई और विविधता को दर्शाता है। श्रीमती वासंती वैष्णव ने रायगढ़ घराने की शिक्षा अपने पिता व सुप्रसिद्ध कलागुरु श्री फिरतूराम महाराज से प्राप्त की है। कठोर साधना और संगतिक अनुशासन के प्रति उनकी निष्ठा ने उन्हें देश की प्रतिष्ठित कथक नृत्यांगनाओं की श्रेणी में स्थापित किया है। वे देश के प्रमुख कला मंचों पर अपनी अद्वितीय प्रस्तुतियों से रायगढ़ घराने की परंपरा को निरंतर आगे बढ़ा रही हैं।

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जबलपुर की कथक गुरु नीलांगी कालांतरे ने बिखेरी कला की छटा

कथक की प्रख्यात गुरु नीलांगी कालांतरे ने अपनी विलक्षण प्रस्तुति से ऐसा समां बाँधा कि पूरा कार्यक्रम स्थल तालियों की गडग़ड़ाहट से गूँज उठा। उनकी साधना, भाव-भंगिमा और मनमोहक नृत्य मुद्राओं ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
गुरु नीलांगी कालांतरे ने सात वर्ष की आयु से कथक की शिक्षा आरंभ की। उन्हें यह ज्ञान गुरु शरदिनी गोले जी और पंडित रोहिणी भाटे जैसे विख्यात गुरुओं से प्राप्त हुआ। लगभग तीन दशकों से अधिक समय से वे कथक की परंपरा को साधते हुए इसे नई ऊँचाइयों पर पहुँचा रही हैं। मंच पर उनकी उपस्थिति मात्र ने ही वातावरण को आध्यात्मिक और कलात्मक ऊर्जा से भर दिया। उन्होंने पारंपरिक कथक की बारीकियों के साथ आधुनिक प्रयोगों का ऐसा सुंदर समन्वय प्रस्तुत किया, जिसने दर्शकों को शास्त्रीय नृत्य की गहराई से अवगत कराया। भक्ति और लयात्मकता से ओतप्रोत उनकी प्रस्तुतियों ने यह संदेश दिया कि कला साधना केवल प्रदर्शन नहीं, बल्कि जीवन का अभिन्न हिस्सा है।

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Author: Deepak Mittal

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