महाकुंभ नगर। दिव्य और भव्य महाकुंभ के पहले अमृत स्नान पर मंगलवार को अपेक्षा से अधिक श्रद्धालुओं की भीड़ आ गई। स्नानार्थियों की भारी भीड़ के दबाव में कई जगह बैरिकेडिंग टूट गई।
संगम तट पर उस समय स्थिति विकराल हो गई, जब अखाड़ों के संतों ने स्नान शुरू किया।
नागा साधुओं का दर्शन पाने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु उनकी ओर बढ़े तो संभालने के लिए ठंड में भी पुलिसकर्मियों के पसीने छूट गए। हालांकि पुलिस अधिकारी लगातार स्थिति पर सतर्क दृष्टि रखते हुए जरूरी उपाय करते रहे, जिस कारण स्नान पर्व सकुशल आगे बढ़ता रहा।
जहां स्थान मिला, वहीं किया विश्राम
विश्वप्रसिद्ध महाकुंभ में पौष पूर्णिमा पर स्नान कर चुके अधिकांश श्रद्धालु मेला क्षेत्र में ही रात को जहां स्थान मिला, वहीं पर विश्राम किया। इस आशा के साथ कि मंगलवार सुबह फिर से अमृत स्नान करेंगे और साधु-संतों की चरण रज व दर्शन प्राप्त करेंगे।
जब अमृत स्नान की बेला शुरू हुई तो श्रद्धालुओं की भीड़ धीरे-धीरे संगम तक की ओर बढ़ने लगी। कुछ ही देर में संगम तक श्रद्धालुओं की भीड़ से इतना भर गया तो खड़े होने की जगह नहीं बच रही थी। इसी बीच जब अखाड़ों के संतों ने संगम स्नान शुरू किया तो उनका दर्शन प्राप्त करने के लिए उल्लासित भीड़ एकाएक आगे बढ़ गई।
इससे बैरिकेडिंग टूट गई और अफरातफरी मच गई। अलग-अलग मोर्चे पर तैनात सुरक्षाकर्मियों ने किसी तरह स्थिति को संभाला और फिर घाट को खाली कराने में जुट गए। इस दौरान वह ठंड में भी पसीने से भीग गए।
धर्म के साथ राष्ट्र ध्वजा थामकर अखाड़ों का अमृत स्नान
मकरसंक्राति पर संगम किनारे उमड़े लाखों श्रद्धालुओंं मंगलवार को उन कौतुक कथाओं के साक्षात दर्शन किए जिनके बारे में वह सुना करते थे। महाकुंभ के पहले अमृत स्नान पर निकले अखाड़ों के वैभव और उनकी कलाओं के प्रदर्शन ने उन्हें रोमांचित कर दिया।
अवधूतों के भेष में नागा संतों को देख लोग अभिभूत थे और उनकी चरण रज लेने को आतुर। त्रिवेणी (संगम) तट संतों की अद्वितीय गतिविधियों का साक्षी बना। अनुशासित भाव में अखाड़ों का शस्त्र कौशल देखने लायक था। कभी डमरू बजाकर शंखनाद करते, कभी भाले और तलवार भांजकर युद्ध कला का प्रदर्शन।
लाठियां लहराते हुए उनका युद्ध कौशल पौरुष और पराक्रम का प्रतीक था। जो समर्पण अखाड़ों का अपनी धर्मध्वजा और इष्टदेव के प्रति था, वही भाव राष्ट्र ध्वज तिरंगा के लिए भी दिखा। इससे संगम क्षेत्र की अलौकिक छटा अविस्मरणीय बन गई।
