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RBI के इस निर्देश से बैंकों के लिए बढ़ सकता है रिस्क, जानिए क्या है पूरा मामला

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Deepak Mittal

बैंकों के लिए एग्रीकल्चर लोन बड़े सिरदर्द का कारण रहा है। इसकी वजह यह है कि ज्यादातर कृषि लोन कोई एसेट बैंक के पास गिरवी रखे बगैर दिए जाते हैं। इसका मतलब है कि इस लोन के नहीं चुकाए जाने की स्थिति में बैंक के पास अपने पैसे को हासिल करने का कोई तरीका नहीं होता है।

बैंकों का यह पैसा डूब जाता है। कृषि लोन का मसला लंबे समय से राजनीति से भी जुड़ा रहा है। बैंकों को आरबीआई के तय नियमों के तहत कृषि लोन देना अनिवार्य होता है। हर साल सरकार बैंकों के लिए कृषि लोन का टारगेट बढ़ाती है।

कोलैटरल-फ्री कृषि लोन की नई सीमा

बैंक अनसेक्योर्ड लोन (Unsecured Loan) को रिस्की मानते हैं। बैंकों के पोर्टफोलियो में कोलैटरल-फ्री लोन की जितनी ज्यादा हिस्सेदारी होती है, उनकी मुश्किल उतनी ज्यादा बढ़ जाती है। RBI ने 6 दिसंबर को अपनी मॉनेटरी पॉलिसी में एक बड़ा ऐलान किया। उसने कोलैटरल-फ्री एग्रीकल्चर लोन की सीमा बढ़ा दी। कृषि और इससे संबंधित क्षेत्रों के लिए कोलैटरल-फ्री एग्रीकल्चरल लोन की सीमा 1.6 लाख रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर दी गई है। इसका मतलब है कि कोई व्यक्ति कृषि या ऐसे दूसरे कामों के लिए बैंक के पास कोई संपत्ति रखे बगैर 2 लाख रुपये तक का लोन ले सकता है।

RBI ने क्यों बढ़ाई लिमिट?

RBI ने कहा है कि उसने कोलैटरल-फ्री लोन की सीमा इसलिए बढ़ाई है, क्योंकि पिछले कुछ सालों में इनफ्लेशन लगातार बढ़ा है जिससे कृषि कार्य में इस्तेमाल होने वाले खाद, बीज जैसी चीजों की कीमतें बढ़ी हैं। केंद्रीय बैंक ने बैंकों को कृषि कार्य और इससे संबंधित कामों के लिए 2 लाख रुपये तक का लोन बगैर किसी कोलैटरल के देने को कहा है। आरबीआई ने बैंकों को इस निर्देश पर जल्द अमल करने को कहा है। उसने कहा है कि इस पर 1 जनवरी, 2025 से अमल शुरू हो जाना चाहिए। बैंकों को इन बदलावों के बारे में पर्याप्त विज्ञापन देने को भी कहा गया है।

बैंकों के एसेट पर बढ़ सकता है दबाव

आरबीआई लंबे समय से कोलैटरल-फ्री एग्रीकल्चर लोन की लिमिट बढ़ाता आ रहा है। इसकी वजह बढ़ता इनफ्लेशन है। 2019 में इस लिमिट को 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.6 लाख रुपये कर दिया गया। इससे पहले 2010 में आरबीआई ने 50,000 रुपये से बढ़ाकर लिमिट 1 लाख रुपये कर दी थी। खास बात यह है कि बैंकों को ऐसे वक्त कोलैटरल-फ्री लोन बढ़ाने को कहा गया है, जब बैंक ज्यादा रिस्क की वजह से एग्रीकल्चरल लोन देने में सुस्ती बरत रहे थे।

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